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आप्तवाणी-९
ही नहीं होगा न! यह कैफ का पौधा तो 'ज्ञान' होने के बाद उगा है, यह पौधा बाद में ही उगा है। 'ज्ञान' दिया, उस घड़ी वे सभी पुराने पौधे तो खत्म हो गए और बाद में फिर यह नया पौधा पैदा हुआ। अगर जागृति रहे तो वह नहीं उगेगा। यह जो कुछ भी है, वह सारा अजागृति से ही हैं। ढेर सारी अजागृति होती हैं। एकाध-दो गुणों जितनी अजागृति नहीं। कितनी सारी स्थूल अजागृति हो तब जाकर यह उत्पन्न होता है। वर्ना पैदा ही नहीं होगा न!
प्रश्नकर्ता : इसमें किस बारे में जागृति रहनी चाहिए? दादाश्री : सभी बारे में। उगे नहीं ऐसा चाहिए। प्रश्नकर्ता : क्या-क्या होता है उसमें ?
दादाश्री : यह पैदा क्यों हुआ? पैदा होता है वही अजागृति है। जागृति उतनी कम कहलाती है। पैदा ही क्यों होगा? कषाय होते हैं उस समय क्यों जागृति आ जाती है ?! सामनेवाला व्यक्ति कषाय कर रहा हो, तब भी जागृति आ जाती है। खुद को कषाय होता है तब भी जागृत ! यह तो कषाय से भी अधिक खराब, आत्मघाती तत्व है यह ! अपना घात करता है। कहेगा, 'जानते हैं लेकिन कुछ हो नहीं पाता,' जानने का फिर कैफ! लेकिन वहाँ पर उसे तो अज्ञानता से हमेशा कैफ ही रहता है लेकिन यहाँ अगर इस 'ज्ञान' के बाद कैफ चढ़ जाए तो कितनी उल्टी समझ कहलाएगी? ज्ञान जानने का कैफ? अज्ञानता का कैफ तो रहता है!
प्रश्नकर्ता : कषाय तो दादाजी, संयोग से खड़ा होता है। संयोग आए तब जागृति रह सकती है, वह निरंतर रहे, ऐसी चीज़ नहीं है। जबकि यह जो कैफ है, वह निरंतर अंदर पड़ा रहता है ?
दादाश्री : यह तो उगता ही रहता है, पानी भी छिड़कते हैं। पानी भी छिड़कते रहते हैं। रात-दिन की अजागृति। उसी को आपघाती कहता हूँ न ! 'जान लिया तो उसे कहते हैं कि सभी प्रकार के कैफ उतर जाएँ।