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[७] खेंच : कपट : पोइन्ट मैन
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आया हुआ होना चाहिए। उदय अपने आप ही आता है। जो 'सीट' चाहिए ही नहीं, उस 'सीट' पर ही बैठना पड़े, तो बात अलग है यानी उसके लिए आकांक्षा नहीं रखनी है!
खुद के पेपर में खुद ही मार्क्स दे, तो कोई फेल होगा? प्रश्नकर्ता : कोई नहीं होगा।
दादाश्री : खुद पेपर की जाँच करे, खुद ही मार्क्स दे और खुद ही फेल हो जाए, तब मैं जानूँगा कि 'जजमेन्ट' है लेकिन ऐसा होता नहीं है न?
प्रश्नकर्ता : यह तो वापस खुद बाहर नम्र दिखने की भी मेहनत करता है।
दादाश्री : इसलिए आत्मघात कहता हूँ न! वह आत्मघात लाता है। हमें तो इतना देखना है कि लोगों को आकर्षण होता है ? नहीं! यदि आकर्षित नहीं होते तो बहुत रोग है अभी तक। आकर्षण यानी शुद्ध ही! शुद्ध होने लगे तो आकर्षित होने लगते हैं।
प्रश्नकर्ता : नहीं दादाजी, लोग तो आकर्षित होते हैं। कुछ समय के लिए तो आकर्षित होते हैं न? ।
दादाश्री : नहीं। बिल्कुल भी नहीं न! खड़ा ही नहीं रहता न कोई! पहले ही दिन उड़ जाता है बल्ब ! एक-दो दिन के लिए निभा लेते हैं लोग, फिर नहीं निभाते। यह तो, 'ज्ञानीपुरुष' हैं, तो हमें दोष का पता चलता है। वर्ना तो उसे खुद को कैसे पता चलेगा? चला स्टीमर कोचीन की तरफ! कुतुबनुमा बिगड़ गया है, इसलिए कोचीन चला! वह कुतुबनुमा दक्षिण को ही उत्तर दिखाता है ! वर्ना कुतुबनुमा हमेशा उत्तर में ही ले जाता है, वह उसका स्वभाव है! कुतुबनुमा बिगड़ जाए फिर क्या करें? और खुद को ध्रुव के तारे देखने आते नहीं है!
ये सभी भय सिग्नल जानने ही पड़ेंगे न? यों ऐसे ही कुछ चलता होगा?