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[७] खेंच : कपट : पोइन्ट मैन
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उसकी स्पृहा क्या? दुनिया की तो यह खुराक है, सब से बड़ी! यह तो 'हॉलिडे' कहलाती है! वह आदत यहाँ पर नहीं रहनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, किसी के डर से उसे कपट करना पड़े, तो वहाँ क्या करना चाहिए?
दादाश्री : डर से कपट करना ही नहीं होता लेकिन हमें डर ही किसका? चोर हों, तो उसे डर होता है लेकिन हमें भला डर क्यों? गुनहगार को डर होता है या बेगुनाह को? खुद गुनहगार है इसलिए डर लगता है लेकिन गुनाह करना बंद कर दो न।
प्रश्नकर्ता : एक ध्येय पकड़ में आए कि मोक्ष में जाना है और उसके अलावा कुछ भी नहीं चाहिए और मोक्षमार्ग के बाधक कारण कौन से हैं ? इतना ही यदि स्पष्ट हो जाए तो सभी झंझट खत्म हो जाएँगी और सबकुछ आसान हो जाएगा।
दादाश्री : अरे, ऐसा ही निश्चित हो जाए कि 'मोक्ष के लिए ही चाहिए, और कुछ नहीं चाहिए।' तो बहुत हो गया। ऐसा हो जाए तो काम ही निकल जाएगा न! अभी तो खुद के मन में ऐसा भी हो जाता है कि 'फलाँ भाई मेरे लिए अच्छा बोलें तो ठीक है। जबकि मोक्षमार्गी तो सच्चा जानने के कामी होते हैं, मोक्ष के कामी होते हैं, दूसरी कोई दखल ही नहीं।
'मैं जानता हूँ' - आपघाती कारण प्रश्नकर्ता : क्या ऐसा कहा जा सकता है कि इस मोक्षमार्ग में सब से बड़ा बाधक कारण है, 'मैं जानता हूँ, मैं समझता हूँ'?
दादाश्री : हाँ, यह आत्मघाती कारण है।
प्रश्नकर्ता : उसे ज़रा अधिक स्पष्ट कीजिए न। वह छूट जाए तो कैसे लक्षण होते हैं ? वह दोष बरतता हो तब कैसे लक्षण होते हैं ? और उसके सामने किस तरह से जागृति रह सकती है?
दादाश्री : ये छोटे बच्चे बड़ों से घबराते हैं क्योंकि उनकी अक्ल