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[६] लघुतम : गुरुतम
नंबर तक पर चला जाऊँ इसलिए फिर मैं बैठता ही नहीं था! मैंने कहा, 'हमें यह नहीं पुसाएगा, हमें इस रेस कोर्स में नहीं उतरना है । पहले नंबर के घोड़े को ही इनाम देते हैं, दूसरेवाले को देते ही नहीं है फिर ।' तो फिर वे मुझसे कहते हैं, 'आप चाचा हैं इसलिए विवाह में आपको बीच में बिठा रहे हैं, तो क्यों नहीं बैठ रहे हैं ? और आप इधर-उधर हो जाते हैं और फिर दूर खड़े रहते हैं या कहीं भी बैठ जाते हैं। व्यवहार में हमारा बुरा दिखता है न!' मैंने कहा, 'नहीं, कुछ बुरा नहीं दिखता लोग समझ गए हैं मुझे कि ये भक्त हैं और इन्हें इस चीज़ की कोई समझ नहीं है।' तब भी कहते हैं, 'नहीं, लेकिन हमारा बुरा दिखता है।' तब मैंने उन्हें समझाया। मैंने कहा, 'भाई, मैं कभी भी कहता नहीं हूँ लेकिन ऐसा पूछ रहे हो इसलिए सच ही बता देता हूँ। मैं वहाँ बीच में बैठता हूँ और फिर जब जौहरी लक्ष्मीचंदवाले आएँगे तब मुझे हटना पड़ेगा। फिर ये मगन भाई, शंकर भाई आएँगे तो मुझे हटना पड़ेगा। यानी कि मुझे जगह बदलनी पड़ेगी । और इस तरह अपमान उठाने से तो यहाँ सम्मान से बैठने में क्या बुराई है ? मैं स्पर्धा में नहीं पड़ता, इस रेस कोर्स में नहीं पड़ता।' इसलिए मैंने कहा, 'मुझे बीच में बैठने के बाद नौवें नंबर पर जाना पड़े, ऐसी नाक कटवाने के बजाय हम दूर ही अच्छे ।' लेकिन मैंने ऐसा मुँह पर नहीं कहा बल्कि ऐसा हिसाब लगा कर मैं खिसक गया कि इस 'रेस- कोर्स' में पहले घोड़े को इनाम मिलेगा, बाकी तो किसी को इनाम नहीं मिलनेवाला न! ऐसी घुड़दौड़ मुझे पसंद नहीं है। जो प्रथम आए उसे इनाम और जो दूसरे नंबर पर आए वह इतना हाँफ जाता है लेकिन उसे इनाम कुछ भी नहीं । तब कहे, 'बहुत लुच्चे हैं आप।' मैंने कहा, 'अब इसे जो मानो, वह है । यह हमारी कला है ! और आप इसे लुच्चाई मानो या कुछ भी मानो वह ठीक है ।' तब कहा, 'यह तो छूट जाने की असल कला है, लुच्चाई ढूँढ निकाली !'
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लेकिन यह हमारी कला है ! भोजन वगैरह करते हैं, आइस्क्रीम खाते हैं। मैं तो चाय पीते-पीते देखता रहता हूँ कि कौन सा घोड़ा प्रथम आता है। हाँ, हमें चाय पीते-पीते देखना है कि वह घोड़ा प्रथम आया। हमें उसमें दौड़ना नहीं है । हमें ज्ञाता - दृष्टा रहना है । इस घौड़े के साथ