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आप्तवाणी-९
नहीं रही।' बरकत तो हमने देख ली! बहुत दौड़े, खूब दौड़े! यह तो मैं हिसाब निकालकर अनुभव से कह रहा हूँ। अनंत जन्मों से दौड़ा था, वह तो सब बेकार गया। 'टॉप' पर रहे, उस तरह से दौड़ा हूँ, लेकिन सभी जगह मार खाई है। इसके बजाय तो भागो न, यहाँ से! अपनी असल जगह ढूँढ निकालो, वाह....जायजेन्टिक!
इसलिए अगर ऊपर से देवता भी आकर कहें, आपको इस घुड़दौड़ में पहला नंबर दे रहे हैं।' तब भी कहेंगे, 'नहीं, ये दादा उस जगह पर जाकर आएँ हैं, वे उस जगह की बातें बताते हैं और वह हमें सच लगा। हमें घुड़दौड़ चाहिए ही नहीं।'
हमारे संबंधी के साथ पैसे से संबंधित बात निकली न, तब मुझे कहते हैं, 'आपने तो बहुत अच्छा कमा लिया है।' मैंने कहा, 'मेरे पास ऐसा कुछ है ही नहीं। और कमाई में तो, आपने कमाया है। वाह... मिलें वगैरह सब रखी हैं। कहाँ आप और कहाँ मैं !? आप न जाने क्या सीख गए कि इतना सारा धन इकट्ठा हो गया। मुझे इस बारे में कुछ नहीं आता। मुझे तो उसी बारे में आया।' ऐसा कहा इसलिए फिर हमारा उनसे कोई लेना-देना ही नहीं रहा न! 'रेस-कोर्स' ही नहीं रहा न! हाँ, कुछ लेना-देना ही नहीं। क्या उनके साथ स्पर्धा में उतरना था?
लोग हमेशा ही ऐसी स्पर्धा में रहते हैं, लेकिन मैं कहाँ उनके साथ दौडूं? उन्हें इनाम लेने दो न! हमें देखते रहना है। अब, अगर स्पर्धा में दौड़ेंगे तो क्या दशा होगी? घुटने वगैरह छिल जाएँगे। इसलिए अपना तो काम ही नहीं है।
__ इनाम ‘पहले' को, हाँफना सभी को
हमें किसी परिचित के यहाँ विवाह में जाना होता, तब अगर उन्होंने मुझे बीच में बिठाया हो और अगर कोई जयचंद आ जाएँ तो कहते, 'जरा खिसकना, फलाँ आएँ है तो खिसकना।' कोई डॉक्टर आ जाए, तो 'खिसकना।' मोहन भाई आ जाएँ कि तो 'खिसकना।' यों खिसक-खिसककर तेल निकल जाता था। यों खिसक-खिसकर नौवें