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[६] लघुतम : गुरुतम
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प्रश्नकर्ता : कोई सीखे और करे तो?
दादाश्री : हाँ, हमारा शब्द जो सीख गया और उस अनुसार चला फिर तो समझो काम ही हो गया। 'ज्ञानीपुरुष' का एक ही अक्षर यदि समझ में आ गया तो कल्याण ही हो जाएगा! बाकी, थर्ड में से फोर्थ में कब जाएँगे? उससे ये 'दादा' मैट्रिक से बाहर 'फर्स्ट इयर' में बिठा देते हैं! वे लोग तो 'फिफ्थ', 'सिक्स्थ' में है, और खुद से तो थर्ड में भी पास नहीं हुआ जा सकता। उसके बजाय 'दादा' कहते हैं उस अनुसार चलो न, तो हल आ जाएगा। वर्ना लोग तो कर्म बंधवाने के लिए आते हैं कि, 'आप ऐसा कर दीजिए, वैसा कर दीजिए।' हमारे पास तो चीडिया तक भी नहीं फटकती न! आता भी नहीं है और जाता भी नहीं है! अडोसी भी नहीं आता और पडोसी भी नहीं आता! और कोई 'खराब है' ऐसा भी नहीं कहता, 'बहुत अच्छे इंसान हैं' ऐसा कहते हैं।
यानी रास्ता हमारा बहुत अच्छा है, कलावाला रास्ता और 'सेफसाइड'वाला। वर्ना तो थर्ड में से फोर्थ में भी जाना मुश्किल है। यदि लोगों की लाइन के अनुसार चलने गए न, तो 'थर्ड' में से 'फोर्थ' में जाना बहुत मुश्किल है और इस काल में उतनी 'कपैसिटी' भी नहीं होती। उसके बजाय अब आप 'फर्स्ट इयर इन कॉलेज' ग्रेज्युएट में, दादाई कॉलेज में बैठ गए हैं तो अब पकौड़े वगैरह खाना चैन से। लोग भोक्ता नहीं हैं और हम भोक्ता! लोगों को भोगना तो है ही नहीं न! दौड़ते ही रहना है ! इनाम लाना है न?!
एडमिशन लेने जाए और ले ले इतना ही नहीं है यह और एडमिशन लेकर फिर नहीं आए उतना भी नहीं है यह। यह तो पूरा कर लेने जैसा है। यह एक कोर्स पूरा कर लेने जैसा है। अनंत जन्मों से यह कोर्स पूरा नहीं किया है, और किया होता तो निर्भयता! उसकी तो बात ही अलग है न!