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[७] खेंच : कपट : पोइन्ट मैन
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हम तो सब कह देते हैं, जैसा है वैसा। फिर अगर हठ पकड़े तो हम समझ जाते हैं कि बहुत भयंकर अज्ञानता है, वह खुद का अहित ही कर रहा है। फिर हम बोलते ही नहीं हैं। हम मौन रहते हैं। हठ करने लगे, तब उसे समझ में ही नहीं आएगी न मेरी बात? समझ में आ जाएगी तो क्या हठ करेगा?
यानी यहाँ पर तो कैसा है? बहुत समझदारी से रहना है। परम विनय शब्द कहा है, उसका अर्थ इतना समझ जाना है कि बिना बात के कुछ भी नहीं कहना है। काम का हो तो कहना। खुद का सयानापन या खुद की अक्ल यहाँ पर नहीं दिखानी है। आपकी सारी अक्ल नकल की हुई है, दरअसल नहीं है। यानी कि लोगों का देखकर सीखे हैं, किताबों से सीखे हैं! और फिर वाद-विवाद करने लगें तो रुकते भी नहीं है। अरे, जब बहस करने लगे, तब आपको पता नहीं चलता कि बहस करने लगा है ? बहस करना यानी खुद का स्थान छोड़कर नीचे गिरना!
प्रश्नकर्ता : पहले तो आप तुरंत टोक देते थे कि ये गिरा, गिरा, गिरा!
दादाश्री : वह तो अभी भी कहता हूँ न लेकिन वह भी किसे कह सकते हैं? कुछ ही लोगों को 'गिरा, गिरा' कह सकते हैं। बाकी का तो हमें चला लेना पड़ता है। अभी तक उनमें शक्ति ही नहीं आई है। कुछ कहेंगे तो बेचारा वापस चला जाएगा। जिसने 'मेरा हित-अहित' जान लिया हो, उसे ऐसा कह सकते हैं। यानी मज़बूत हो जाने के बाद कहते हैं। सभी से ऐसा नहीं कह सकते। वर्ना तुरंत चले जाएँगे वे तो! 'ये चले। हमारे घर में पत्नी है, माँ है, सभी हैं। क्या कुंआरे हैं ?' ऐसा कहेंगे। 'नहीं भाई, तू विवाहित है, तू हर तरह से ठीक है लेकिन यदि यहाँ से भटक गया तो यह स्टेशन फिर से नहीं मिलेगा, लाखों जन्म बीत जाने पर भी।' इसलिए बच्चे की तरह समझाकर बिठाना पड़ता है। वह भी टॉफी दे-देकर। मैंने सब से कहा है न कि किसने यह ज्ञान समझकर लिया है ? इन सब को समझा फुसलाकर 'आओ, आओ, यह तो ऐसा है, वैसा है!' फुसलाकर ज्ञान दिया है।