________________
[७] खेंच : कपट : पोइन्ट मैन
३९५
दादाश्री : गाड़ी में तो इतना भी सोचता है कि, 'ऐसा सब दुःख है इंसान को, तो हेल्प करूँ।' संबंध नहीं मानता न! और फिर स्टेशन आए, तो खुद उतर पड़ता है।
अब, सही बात पकड़कर रखना, वह झूठ है। सत्य की पूँछ पकड़ना असत्य ही है और असत्य को भी छोड़ दे, वह सत्य है। पकड़कर रखा कि सब बिगड़ गया। इन लोगों ने सत्य की पूंछ पकड़ रखी है और मार खाते रहते हैं। जैसे गधे की पूँछ पकड़कर रखते हैं न? वे लात खाते रहते हैं, लेकिन कहते हैं 'नहीं छोडूंगा मैं !'
जबकि हमें थोड़ा भी ग्रह या आग्रह नहीं है। किसी भी बारे में ज़रा सा भी ग्रह या आग्रह नहीं है कि 'ऐसा ही है!' एक सेकन्ड के लिए भी नहीं रहता न! 'यह सही है, यह सत्य है,' हमारा ऐसा आग्रह भी नहीं रहता। यह ज्ञान हुआ है, उसका भी आग्रह नहीं है। आप कहो कि, 'वह गलत है' तब भी आग्रह नहीं रहता। आपकी दृष्टि से जो आया, वही ठीक है।
हमारा किसी भी जगह पर मतभेद नहीं है तो निश्चित रूप से यह बात मान लेनी चाहिए कि हम 'करेक्ट रास्ते पर हैं।' और जहाँ मतभेद पड़े, वहाँ पर जानना कि यह रास्ता अभी तक 'क्लिअर' नहीं हुआ है। अभी आगे पहाड तोड़ने हैं, बड़े-बड़े पत्थर आएँगे वे निकालने हैं। वर्ना रोड पर अगर पत्थर होंगे तो टकराएँगे ही न?!
सरल बनकर समाधान लाओ सरल यानी जहाँ सही बात है तुरंत वहाँ मुड़ जाए। अपना आत्मा कबूल करे ऐसी बात हो, वहाँ पर भी तुरंत पलट जाए, वहाँ पर पकड़कर नहीं रखे। जो पकड़कर रखता है, उसे सरल नहीं कहा है।
__ यानी पकड़ भी नहीं रखनी चाहिए न! पकड़ रखना बहुत बड़ा गुनाह है, और भी ज्यादा गुनहगार है।
प्रश्नकर्ता : दो लोगों में गलतफ़हमी हो जाए, तो वाद-विवाद हुए बगैर रहता ही नहीं।