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आप्तवाणी-९
दादाश्री : मैं तुरंत ही समझ जाता हूँ। उसका तौल वगैरह सब मुझे पता चल जाता है। उनके कहते ही समझ जाता हूँ कि ये उस ओर झुके हुए हैं और फिर मुझे कहाँ उस तरफ झुका रहे हैं? ! 'ज्ञानीपुरुष' में भोलापन आ जाए तो फिर रहा ही क्या? भोले जैसे दिखते ज़रूर हैं। जिनमें कपट नहीं है, वह भोलापन कैसा? जहाँ भोलापन है वहाँ कपट रहता ही है। हमेशा भोलापन आया तो दूसरी तरफ कपट रहता ही है। जहाँ कपट नहीं है वहाँ 'सेन्ट परसेन्ट' उसमें भोलापन नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् भोलापन कपट के आधार पर रहा है ?
दादाश्री : 'फूलिशनेस' रहती है, कपट के आधार पर! कपट चला जाए तो 'फूलिशनेस' नहीं रहेगी।
प्रश्नकर्ता : वह कपट कैसा? वह किस प्रकार का कपट?
दादाश्री : सभी प्रकार के ! कपट अर्थात् खुद अपने आपसे सभी कुछ गुप्त रखना, हर एक चीज़ गुप्त रखनी। सभी प्रकार के कपट ! किसी का लाभ उठाने का कपट, किसी को खुद से गुप्त रखना, वह भी कपट है!
प्रश्नकर्ता : अर्थात् किससे गुप्त रखने की बात है ? ।
दादाश्री : खुद की बात जान न जाए, उसके लिए। खुद अकेले में बात कर रहा हो किसी से तब दूसरा कोई आए तो बंद कर देता है या नहीं कर देता?
प्रश्नकर्ता : ऐसा होता है। दादाश्री : उसका क्या कारण है?
प्रश्नकर्ता : वह कपट कहलाता है?
दादाश्री : नहीं तो और क्या कहलाता है वह ? प्रश्नकर्ता : तो भोलापन कहाँ आया उसमें ?