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आप्तवाणी-९
'मेन लाइन' पर हो तो राजधानी एक्सप्रेस, पटरी बदल ले तो कौन से गाँव चली जाएगी? दिल्ली आएगा ही नहीं फिर।
___ अपनी 'मेन लाइन' बदल नहीं जाए उसका ध्यान रखना। ये सारी पिछली आदते हैं न? सिर्फ इतना ही है कि उन आदतों को नहीं निकाला है। आपकी समझ में आना चाहिए कि ये आदतें पहले की हैं।
प्रश्नकर्ता : निश्चय में यदि बलवान हो, स्थिर हो, तो व्यवहार सुंदर हो ही जाएगा न?
दादाश्री : व्यवहार सुंदर होना चाहिए और अगर नहीं होगा तो निश्चय कच्चा पड़ जाएगा।
प्रश्नकर्ता : उसका दिशा निर्देष यंत्र क्या है? 'उल्टी पटरी, सीधी पटरी' का प्रमाण क्या है?
दादाश्री : एक तो अहंकार से मिठास आती है और उल्टी पटरी चढ़ने से मिठास आती है और 'इमोशनल' होता जाता है। जबकि अगर 'मेन लाइन' पर होगा तो निराकुलता रहेगी ही। जबकि उसमें तो निराकुलता चली जाती है, चेहरा व्याकुल दिखता है। ये सारे विचार, वगैरह सब व्याकुल लगता है। उल्टी पटरी पर चलता है, इसलिए खुद का सुख खो देता है।
प्रश्नकर्ता : वह भूल मिट गई, ऐसा कब कहा जा सकता है?
दादाश्री : आप स्पष्ट समझ जाओगे तो वह भूल मिट गई कही जाएगी कि कैसे हुआ? शुरुआत कहाँ हुई? क्या हुआ और क्यों दूसरी पटरी पर चढ़ गया?' ये सभी आधार ढूँढ निकालो तो जानना कि भूल मिट गई। शुरुआत से ही या पहले दिन से ही पता चलेगा कि "क्या हुआ और किस आधार पर, इसका आधार कहाँ से मिल गया और कहाँ से 'इमोशनल' हुए, कहाँ से निराकुलता गई'।
प्रश्नकर्ता : यह व्यवहार जो होता है, उसमें तो कोई धारणा ही नहीं होती कि ऐसे जाना है या ऐसे जाना है। जो भी व्यवहार होता है,