________________
[६] लघुतम : गुरुतम
३८३
रेसकोर्स के परिणाम स्वरूप
हमारा कंपनियों में पहले नंबर आने लगा न, तब मन में पावर घुस गया कि यह तो दिमाग़ बहुत अच्छा काम कर रहा है। लेकिन तब तो, अक्ल नहीं थी, कमअक्ल था, परेशानी मोल लेने का संग्रहस्थान था । परेशानी कम करे, उसे अक्ल कहते हैं ! हाँ, आने वाली परेशानी अपने पास न आए, बीच में कोई और ही वह ताज पहन ले तो वह परेशानी उसके पास चली जाएगी।
लोगों का तो तरीका ही गलत है, रिवाज़ ही पूरा गलत है ! तो इन लोगों के रीत-रिवाज़ के अनुसार हम दौड़कर पहला नंबर लाए । उसके बाद भी वापस आखरी नंबर आया, तो फिर मैं समझ गया कि यह दगा है! मैं तो वहाँ भी दौड़ा हूँ, खूब दौड़ा हूँ, लेकिन उसमें पहला नंबर लाने के बाद फिर आखिरी नंबर आया था । तब हुआ कि, "यह कैसा चक्कर है ? यह तो फँसने की जगह है!' इसमें तो कोई हल्का आदमी जब चाहे तब अपने को मटियामेट कर सकता है। ऐसा कर देगा या नहीं कर देगा? पहला नंबर आने के बाद दूसरे दिन ही थका देता है ! तब हम समझ गए कि इसमें पहला नंबर आने के बाद फिर आखरी नंबर आता है, इसलिए घुड़दौड़ में उतरना ही नहीं है ।
हम तो सिर्फ चैन से ही रहे हैं। पहले तो रास्ते ऐसे टेढ़े-मेढ़े थे न, तो अंदर हिसाब चलता था कि यह रास्ता ऐसे मुड़कर वापस उस तरफ जा रहा है! तो पूरा वर्तुल हो, तो एक का तीन गुना हो जाएगा, तो यह आधा वर्तुल डेढ़ गुना होता है तो डेढ़ गुना रास्ता चलने के बजाय सीधा ही चला था। शुरू से ही में लोगों के रास्ते पर चला ही नहीं, मेरा आम रास्ता है ही नहीं । आम रास्ते से व्यापार भी नहीं । अलग ही व्यापार ! रीत भी अलग और रस्म भी अलग। सभी कुछ लोगों से अलग और घर पर कभी रंग नहीं करवाया। दीवारों को रंगना हो तो अपने आप ही रंग जाएँ !
इसलिए हम तो यही एक शब्द कहते हैं कि, 'हममें अब बरकत