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[६] लघुतम : गुरुतम
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भी किराए पर, दूसरा भी किराए पर, तीसरा भी किराए पर, डॉक्टर भी किराए पर, वकील भी किराए पर, सबकुछ किराए पर!
__कोई भी इंसान, अपनी-अपनी लाइन में होशियार होता है और बाकी लाइनों में सभी बेवकूफ होते हैं। उससे तो अपना अच्छा है, एक लाइन में बड़ा ‘एक्सपर्ट' कहलाने से सब में बेवकूफ! अरे... बड़े दादाचांद जी होते हैं, लेकिन कोई खास बात आए तो कहते हैं, 'इसके लिए तो उसके पास जाना पड़ेगा।' हमारे पास मकान बनवाने आते हैं। यों तो बड़े डॉक्टर होते हैं, लेकिन वे बेचारे विनय में रहते हैं क्योंकि उन्हें इस तरफ का कुछ भी पता नहीं है न! ऐसा है यह जगत् । बाकी बातों में बेवकूफ ही होता है। हर एक बात में तो कोई तैयार हो ही नहीं सकता न! यानी कहीं न कहीं तो बेवकूफ कहलाएगा न? उससे तो सभी में बेवकूफ बन जाओ न! आपको समझ में नहीं आया? एक सूंठ की गाँठ के लिए पंसारी कहलाना, इससे तो 'हम पंसारी हैं ही नहीं, पंसारी तो आप।' हमारी खोज अच्छी है न?
एक स्त्री से पूछा कि, 'अब आपका पति का देहांत हो गया है, तो कारखाना कैसे चलाएँगी?' तो मुझसे कहने लगीं, 'वह तो मैनेजर रख गूंगी।' तो फिर, यों किराए पर मिलता है ऐसा सब?! तो फिर पति मर गया तो रो क्यों रही है? यदि सब किराए पर मिलता है, अक्ल भी किराए पर मिलती है और सबकुछ किराए पर मिलता है तो किराए पर से ले आओ न! जबकि 'इसे' (ज्ञान) किराए पर थोड़े ही लेना है? 'यह' तो असल धन है! लोग किराए पर मिलते हैं या नहीं मिलते? दादाचांद जी किराए पर मिलते हैं या नहीं मिलते? उन्हें पाँच हज़ार रुपये मिल रहे हों और हम कहें, दस हज़ार दूँगा। तो तुरंत दादा चंद जी आ जाएँगे न! किराए पर मिलते हैं और 'हमें' तो किसी के यहाँ किराए पर नहीं जाना है, और क्या हमें कोई किराए पर ले सकता है? हमारा किराया भी नहीं दे सकते न! अमूल्य का किराया कैसे दे सकेंगे? यह बिल्कुल ठीक सरल रास्ता है न?
इसमें क्या अक्ल रखनी है? तो तभी से हमने बात छोड़ दी न, लगाम ही छोड़ दी न! और कह दिया, 'हमें समझ में नहीं आता।' तो