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[६] लघुतम : गुरुतम
मोक्ष में जाने का मार्ग नहीं मिला है इसलिए दूसरों को भी नहीं जाने देते, ऐसा है लोगों का स्वभाव । यह जगत् मोक्ष में जाने दे ऐसा है ही नहीं, इसलिए इन्हें समझा-बुझाकर, आखिर में हारकर भी कहना कि, 'हम तो हार चुके हैं।' तब वे आपको छोड़ देंगे।
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ये लोग तो किसी की भी नहीं सुनते थे न ! इसलिए हमें समझ जाना चाहिए कि हराने आए हैं, तभी से कहना चाहिए कि 'भाई, मैं तो हारकर बैठा हूँ। आप जीत गए, मैं तो आपसे हार गया ।' ऐसा कहेंगे तो उसे नींद आएगी कि 'मैंने चंदूभाई को हरा दिया।' इससे उन्हें संतोष होगा !
वर्ना प्रगति रुंध जाती है
हम अपनी 'प्रोग्रेस' नहीं छोड़ते। हम एक बार विनती करके देख लेते हैं। वर्ना, हम तो बात छोड़कर आगे चल पड़ते हैं । हम कहाँ तक बैठे रहें?! हम आपको समझाते हैं। यदि आप अपनी बात पकड़कर रखो, तो हम तुरंत छोड़ देते हैं । हम समझ जाते हैं कि इन्हें दिखाई नहीं दे रहा, तो हम कहाँ तक बैठे रहें? बैठे नहीं रहना चाहिए न ? हमें अपनी राह पकड़ लेनी चाहिए न ! क्योंकि उन्हें आगे दिखाई ही नहीं देता न !
यहाँ से तीन सौ फुट दूर कोई एक सफेद घोड़ा लेकर खड़ा हो और हम किसी से पूछें कि, 'भाई, वहाँ क्या खड़ा है ?' तब वह कहेगा कि, 'गाय खड़ी है।' तो क्या हमें उसे मारना चाहिए ? क्यों नहीं मारना चाहिए? वह उस घोड़े को गाय कह रहा है न ? तो उसे मारना ही चाहिए न? नहीं! उसे ऐसी ‘लोंग साइट' नहीं हो तो, उसमें उस बेचारे का क्या दोष ? वह तो अच्छा है न, कि गधा नहीं कह रहा ! वर्ना वह गधा कहे तब भी हमें 'एक्सेप्ट' करना पड़ेगा । उसे जैसा दिख रहा है, वैसा ही वह कह रहा है। ऐसा है यह जगत् ! हर किसी को, जिसे जैसा दिखाई दिया, वैसा ही वह बोल रहा है।
इस घोड़े के उदाहरण पर से आप बात को समझ गए न ? जैसा