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आप्तवाणी-९
बीज थी। क्यों बोलता ही रहता है ?' चंद्रमा वही का वही है। यह बीज, तीज, चौथ, पाँचम होती ही रहेगी! और उस पर भी ये लोग शंका करते हैं। 'नहीं, यह तीज नहीं है, यह तो बीज है' कहेंगे। तब दूसरा क्या कहेगा, 'तीज है। इस पर भी शंका करते हैं कि यह बीज है?' ले! शंका को क्या ढूँढने जाना पड़ता है ?
इसीलिए तो दुःखी हैं सभी। लोग दुःखी हैं, उसका कारण शंका ही है। निरा दुःख, दुःख और दुःख ही है इसलिए मैं इस बात को समझने का कह रहा हूँ न, कि 'समझो, समझो, समझो!' सभी फेज़िज़ समझने जैसे हैं। जगत् के तमाम फेज़िज़ मेरे पास आ चुके हैं। ऐसा एक भी फेज़ बाकी नहीं है कि जिसमें से मैं गुज़रा नहीं हूँ। हर एक जन्म के फेज़िज़ मेरे ध्यान में हैं और यह बात हर एक फेज़ के अनुभव सहित है।
_ 'वह' 'सेटल' करे, व्यवहार 'जो' व्यवहार से बाहर है, वह 'सेटल' कर सकता है ! वर्ना तब तक व्यवहार में सेटल नहीं हो सकता। जो व्यवहार में ही है, उसे तो व्यवहार का भान ही नहीं होता न! व्यवहार का आग्रह होता है। वह व्यवहार में ही रहता है, इसलिए व्यवहार का उसे पता ही नहीं होता है न! 'ज्ञानीपुरुष' व्यवहार से बाहर होते हैं इसलिए उनकी वाणी ही ऐसी निकलती है कि सामने वाले का सबकुछ एक्ज़ेक्ट हो जाता है। शंका निकालने से नहीं जाती है, ज्ञानीपुरुष के कहने से शंका चली जाती है। वर्ना शंका निकालने से नहीं जाती, बल्कि बढ़ जाती है।
शंका नुकसान ही करवाती है बाहर तो दूसरे लोग उल्टा कहते हैं, जिसे पूछने जाएँ वह कहेगा, 'भाई, सही बात हो तब भी शंका होती है न! शंका नहीं होगी तो हम मनुष्य कैसे? क्या जानवरों को शंका होती है? हम मनुष्य हैं इसलिए इन बेटियों पर शंका तो होगी ही न?' ऐसा सिखाते हैं। मैं क्यों शंका खत्म कर देता हूँ ? क्योंकि शंका तो कुछ भी हेल्प नहीं करेगी। एक बाल बराबर भी हेल्प नहीं करेगी और बेहद नुकसान करेगी इसलिए मैं