________________
३५२
आप्तवाणी - ९
प्रश्नकर्ता : उस योग में क्या करना होता है ?
दादाश्री : दिनोंदिन हल्के होते जाना है । गुरु नहीं होना है, लघु बनना है, हल्के होते जाना है । सभी के शिष्य बनते-बनते पूरे जगत् का शिष्य बन जाएगा। गधे - कुत्ते वगैरह के सभी पेड़-पौधें के, तो लघुतम बन जाते हैं। सभी को गुरुतम बनाएँ तब लघुतम बनते हैं। पसंद आया आपको यह योग ? या नहीं पसंद आया ?
प्रश्नकर्ता : पसंद आया ।
दादाश्री : योग का अर्थ यही है । या तो गुरुतम का योग पकड़ा होता है या फिर लघुतम का योग पकड़ा होता है, दोनों में से कोई भी एक योग पकड़ता है, वह ।
जब गुरुतम का योग होता है, तब यहाँ भारी हो जाता है, गुरुतम बनता है। गुरु का अर्थ ही है भारी और भारी है इसलिए डूब जाता है और डूबता है मतलब वह तो डूबता ही है लेकिन उसके साथ बैठने वाले भी डूब जाते हैं। हाँ, लेकिन गुरु कब नहीं डूबते ? जब उनके पास गुरुकिल्ली होती है तब वे नहीं डूबते। लघु अर्थात् हल्का और गुरु अर्थात् भारी। इन लोगों को बड़ा बनना है न, इसलिए गुरुतम योग ही पकड़ा है सभी ने। सभी को बड़ा बनना है, वे मार खा-खाकर मर गए लेकिन पहला नंबर किसी का नहीं लगा। क्योंकि क्या 'रेस- कोर्स' में नंबर लगता है? कितने घोड़ों को इनाम मिलता है? पाँच करोड़ घोड़े दौड़ रहे हों, तो उनमें से कितने घोड़ों को पहला इनाम मिलता है ? पहला इनाम तो पहले घोड़े को ही मिलता हैं न ?! इस तरह सभी हाँफ - हाँफकर मर जाते हैं इसलिए लघुतम योग पकड़ना ।
प्रश्नकर्ता : हाँ, लेकिन उसकी विधि क्या है ?
दादाश्री : उसकी विधि तो, इस जगत् में सभी के शिष्य बनना है। कोई नालायक कहे तो हमें उसका शिष्य बन जाना है कि, 'भाई, तू मेरा गुरु। आज तूने मुझे सिखा दिया कि मैं नालायक हूँ !'
जगद्गुरु ? नहीं, जगत् को माना गुरु
लोग मुझसे कहते हैं कि, 'आपको हमारे गुरुपद पर स्थापित करना