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आप्तवाणी-९
हमें किसी भी प्रकार की भीख नहीं है, इसलिए हमें यह पद मिला है। जो सर्वश्रेष्ठ पद है, जो पूरे ब्रह्मांड में सब से बड़ा पद है, वह प्राप्त हुआ है। किसी भी प्रकार की भीख नहीं रही इसलिए! क्योंकि जो लक्ष्मी की भीख होती है न, वह हमें नहीं है। हमारे लिए सोने के ढेर बिछा दें तब भी हमारे काम नहीं आएगा। विषय का विचार नहीं आता, ऊपर से देवियाँ आ जाएँ तो भी हमें विचार नहीं आएगा। हमें मान की भीख नहीं है, कीर्ति की भीख नहीं है, शिष्यों की भीख नहीं है, मंदिर बनवाने की भीख नहीं है।
अब मेरा स्वरूप, ज्ञानी के रूप में समझोगे तो आप भी ज्ञानी बनोगे। आप मेरा आचार्य स्वरूप समझोगे तो आप आचार्य स्वरूप बनोगे। आप यदि मेरा स्वरूप आचार्य समझोगे तो मुझे परेशानी नहीं है लेकिन आप आचार्य स्वरूप बनोगे। आपको जो ज़रूरत हो हमारा वही स्वरूप जानना, वैसे ही आप बन जाओगे। मुझे कुछ भी नहीं बनना है। मैं तो बनकर बैठा हुआ हूँ। चार डिग्री से अनुत्तिर्ण हो चुका व्यक्ति! मैं तो अनुत्तिर्ण होकर लघुतम बनकर बैठा हूँ। यानी हमारा पद जिसे जो समझना हो, उतना ही वह उस रूप हो जाएगा। यह बात समझ में आ जाए तो काम निकल जाए।
बरतना ‘खुद' लघुतम भाव से लघुतम पद के अलावा इस जगत् में कोई भी पद छोटा नहीं है। अब अगर ऐसा आपको भाव हो जाए तो फिर आपको कोई भय रहा क्या? बाकी, बड़े होने की भावना से बड़े नहीं बना जा सकता। आप लघुतम पद में रहो तभी उसका फल गुरुतम आता है। यदि व्यवहार में लघुतम पद में रहो, यह 'चंदूभाई' लघुतम पद में हो तो गुरुतम पद अपने आप ही प्राप्त होगा, वर्ना गुरुतम पद प्राप्त नहीं होगा।
प्रश्नकर्ता : आपने जो 'ज्ञान' दिया है, क्या वह लघुतम पद की प्राप्ति नहीं करवाता?
दादाश्री : हाँ, वह लघुतम पद देता है लेकिन अभी तक गुरुतम