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[६] लघुतम : गुरुतम
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सकता था वह लेते गए। अतः उन्हें जो नहीं पच रहा था. वह ज्ञान मेरे पास इकट्ठा हुआ, वह अक्रम के रूप में प्रकट हुआ।
प्रश्नकर्ता : लेकिन हम सभी के रद्दी माल में से ऐसा अक्रम विज्ञान निकला?
दादाश्री : नहीं, रद्दी नहीं। आपको जो ज्ञान नहीं पच सका था और आपको जो अजीर्ण हो चुका था और पड़ा रहा था, वह यहाँ मेरे पास आ गया सारा और आपको जीर्ण हो जाए ऐसा आप यहाँ से ले गए। इस तरह फुल ज्ञान मेरे पास आ गया। फुल ज्ञान, पूर्ण विराम ज्ञान!
_अब इन लोगों को यह बात कैसे समझ में आएगी? इसे तो पढ़ेलिखे लोग समझ सकते हैं। दूसरे लोगों का काम नहीं है न, बेचारों का। यह तो 'साइन्टिफिक' विज्ञान है। विज्ञान अर्थात् फॉरेन के साइन्टिस्ट बैठकर यह सुनें तो उन सभी को 'एक्सेप्ट' करना पड़ेगा!
पहचानना, पद 'ज्ञानी' का ___ इनमें से कोई भी व्यक्ति मेरे पैर तो छूता ही नहीं है, और लोगों को ऐसा लगता है कि ये सभी मेरे पैर छू रहे हैं लेकिन मैं तो इस शरीर में एक मिनट भी नहीं रहता, पच्चीस सालों में एक मिनट भी नहीं रहा हूँ। और लोग तो निरंतर उसी रूप रहते हैं कि 'मैं ही हूँ यह, हाथ भी मैं हूँ और पैर भी मैं हूँ और सिर भी मैं हूँ और यह सब मैं ही हूँ!'
इन मन-वचन-काया से मैं बिल्कुल अलग रहता हूँ। अतः इसे कोई गालियाँ दे-मारे, तब भी मुझे कोई परेशानी नहीं होती न ! लोग मुझे पहचानते ही नहीं! मुझे कैसे गाली दे सकते हैं? और जो मुझे पहचानते हैं वे तो परमात्मा के रूप में पहचानते हैं इसलिए वे सब लोग मुझे गाली देते भी नहीं और उस प्रकार का ऐसा-वैसा व्यवहार भी नहीं होता न! लोग तो 'ए.एम.पेटल' की तरह पहचानते हैं या फिर गुरु की तरह पहचानते हैं लेकिन मैं किसी का गुरु बना ही नहीं हूँ। मैं तो लघुतम पुरुष हूँ। ज्ञानी के रूप में, जो ज्ञानी कहलाते हैं, उस प्रकार से मैं लघुतम हूँ बिल्कुल।