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[६] लघुतम : गुरुतम
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प्रश्नकर्ता : एक ही बार में फट जाएँगे।
दादाश्री : और मुझे सताइस बार करें तब भी ऐसे का ऐसा! और वापस जाकर वापस आ भी जाऊँगा। वे कहेंगे, 'नहीं, नहीं। आप वापस आइए।' तो वापस आ भी जाऊँगा क्योंकि हम लघुतम हो चुके हैं।
'फाउन्डेशन' अक्रम विज्ञान के लघुतम तो अपना केन्द्र ही है। इस केन्द्र में बैठे-बैठे गुरुतम प्राप्त होगा। अपनी तो नई ‘थ्योरीज़' है सारी, बिल्कुल नई!
लघुतम भाव में रहना और अभेद दृष्टि रखनी, वह इस अक्रम विज्ञान का 'फाउन्डेशन' है। 'इस' विज्ञान का 'फाउन्डेशन' क्या है? लघुतम भाव में रहना और अभेद दृष्टि रखनी। जीवमात्र के प्रति, पूरे ब्रह्मांड के जीवों के प्रति अभेद दृष्टि रखनी, यही इस विज्ञान का 'फाउन्डेशन' है। यह विज्ञान कोई यों ही बगैर ‘फाउन्डेशन' का नहीं है।
बाकी, सभी क्रियाएँ अपने आप होती ही रहती है, 'मिकेनिकली' होती ही रहती है। 'दृष्टि' और 'मिकेनिकल,' उन दोनों में बहुत 'डिफरेन्स' है। दृष्टि ही मुख्य चीज़ है और 'मिकेनिकल', वह अलग चीज़ है।
जिसने जगत् के शिष्य बनने की दृष्टि नहीं वेदी (रखी) है, वह जगत् में 'महावीर' नहीं बन सकता। छोटा बच्चा हो, बालक हो, मूर्ख हो या, उन सभी का शिष्य बनने की दृष्टि !
लघुतम अहंकार से मोक्ष की ओर प्रश्नकर्ता : इस लघुतम का अर्थ कैसे निकाला? अपना जो अहंकार है, वह अहंकार जीरो डिग्री पर आ जाए तो वह लघुतम है?
दादाश्री : नहीं। अहंकार तो वैसे का वैसा ही रहता है लेकिन अहंकार की मान्यता ऐसी हो जाए कि, 'मैं सब से छोटा हूँ और वह भी एक प्रकार का अहंकार ही है।' ऐसा है, इस लघु का अर्थ 'छोटा हूँ' हुआ। फिर लघुतर अर्थात् छोटे से भी छोटा हूँ और लघुतम अर्थात्