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आप्तवाणी - ९
सेकन्ड स्टेन्डर्ड, उन सभी के लिए एक गुरु की ज़रूरत है । जो कॉलेज में जाता है न, उसे चौबीस गुरु चाहिए और जो 'अपर कॉलेज' में जाता है न, तो उसे पूरे जगत् के लोगों का शिष्य बनना पड़ता है । अतः हम पूरे जगत् के शिष्य बनकर बैठे हैं। वह ' अपर कॉलेज' में जाए तब लेकिन पहले एक गुरु कब तक रखने हैं ? किंडर गार्टन, फर्स्ट स्टेन्डर्ड, सेकन्ड स्टेन्डर्ड, तब तक एक गुरु ! क्योंकि यह नीचे के स्टेन्डर्ड के लोगों को सिखाया हुआ है, जो अभी तक बाल्यवस्था में हैं कि 'भाई, तू यहाँ पर इतना ही करना । दूसरी जगह झाँकने मत जाना। नहीं तो फिर बिगड़ जाएगा, बेढंगा हो जाएगा ? ।' इस तरह उसके लिए सीमा बना देते हैं लेकिन फिर जब आगे का स्टेन्डर्ड आए तब पूरे जगत् को गुरु बनाने जैसा है, और नीचे के स्टेन्डर्ड वाले को एक ही गुरु बनाने हैं ! कोई कहेगा कि, ‘साहब, मैंने एक गुरु बनाए हुए हैं, ' तो मैं समझ जाता हूँ कि यह सेकन्ड स्टेन्डर्ड का है । तब मैं कहता हूँ, 'ठीक है तेरी बात ।' आपको खुलासा हुआ ?
प्रश्नकर्ता : हाँ, हुआ ।
दादाश्री : वर्ना, अंतिम गुरु तो, इस जगत् में जीवमात्र को गुरु बनाने जैसा है। क्योंकि महावीर भगवान ने क्या किया था ? कि खुद ने जीवमात्र की गुरु के रूप में स्थापना की थी और स्वयं शिष्य की तरह रहे। पूरे जगत् के जीवमात्र को जिन्होंने गुरु बनाया है ! क्योंकि सब से कुछ जानने लायक होता है।
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'ज्ञान, ' दिया या प्राप्त किया ?
यह मेरा अक्रम विज्ञान मैंने आप सभी के पास से जाना है और आप लोग मुझे ऐसा कहते हो कि, 'आप हमें ज्ञान देते हैं ।' लेकिन यह अक्रम विज्ञान मैंने आप सभी के माध्यम से जाना है। अंदर पुस्तकों में तो है नहीं यह अक्रम विज्ञान । तो कहाँ से आया ? इन सब के माध्यम से। उनका खुद का ज्ञान वे देते गए और दूसरा ज्ञान लेते गए। उन्हें जो नहीं पचता था, वह ज्ञान मुझे देते गए और दूसरा ज्ञान जो उन्हें पच