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आप्तवाणी - ९
इस 'रिलेटिव' और 'रियल, ' इसकी 'लाइन ऑफ डिमार्केशन' यदि कोई ‘ज्ञानीपुरुष' डाल दें तो 'पज़ल' 'सॉल्व' हो जाए।
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अब 'रिलेटिव' और 'रियल' की 'लाइन ऑफ डिमार्केशन' तीर्थंकर भगवान के अलावा और किसी के पास नहीं थी । चौबीस तीर्थंकरों ने यह 'लाइन' 'करेक्ट' तरीके से डाली थी और अन्य भी कई ज्ञानी हो चुके है, उन्होंने 'करेक्ट' डाली थी और फिर हमने यह 'लाइन ऑफ डिमार्केशन' 'एक्ज़ेक्ट' डाली है । क्योंकि ज्ञानी किसे कहते हैं ? तीर्थंकर जैसे ज्ञानी होने चाहिए। हाँ, कि जो थोड़े ही फर्क वाले हों। जो 'रिलेटिव' और ‘रियल' में 'लाइन ऑफ डिमार्केशन' डाल दें कि 'दिस इज़ रियल और दिस इज़ रिलेटिव । '
जगत् में तो क्या हुआ है ? 'रिलेटिव' को ही 'रियल' माना गया है। रिलेटिव को रियल मानकर ही लोग चले हैं। वे कभी भी रियल हुए ही नहीं और दिन बदले नहीं । वे अनंत जन्मों से भटक, भटक, भटकते ही जा रहे हैं । कितनी ही योनियों में भटक रहे हैं । सच्ची 'लाइन ऑफ डिमार्केशन' नहीं डली इसीलिए तो पूरा जगत् उलझन में है और इसीलिए 'रिलेटिव' को ही 'रियल' माना है, और उसी को गुरुतम बनाना चाहते हैं । जिसे लघुतम करना था, उसी को गुरुतम बनाते हैं, उसी को कहते हैं भ्रांति ! और वापस कहते क्या हैं ? 'हम भ्रांति हटा रहे हैं।' अरे, यह भ्रांति तो बढ़ रही है। आपको ऐसा नहीं लगता ?
कोई प्रयोग हो, और कोई साइन्सवाला वह प्रयोग करे और मैं प्रयोग करने बैठूं। अब अगर मैं नहीं जानता हूँ तो क्या होगा इसमें ? प्रश्नकर्ता: विस्फोट होगा ।
दादाश्री : हाँ, वह सामान ही बेकार जाएगा, मेहनत बेकार जाएगी, और उँगली जलेगी, वह अलग! क्योंकि वापस उँगली डालकर देखूँ, तो क्या होगा?! और अगर साइन्टिस्ट उँगली डालकर देखे तब भी वह जलेगा नहीं। आपको समझ में आया न ? अतः इस प्रयोग का जानकार