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[६] लघुतम : गुरुतम
३५३ है।' मैंने कहा, 'भाई, नहीं। यहाँ मुझे गुरु मत बनाना। बाहर बहुत गुरु हैं। मैं तो पूरे जगत् की गुरु के रूप में स्थापना करके बैठा हूँ। आप सभी को मैंने गुरु कहा है। मुझे क्यों गुरु बनाते हो?'
मैं तो किसी का गुरु नहीं हूँ। मैं तो लघुतम पुरुष हूँ। अतः हम कुछ कच्ची माया नहीं है कि हम गुरु बनें। मैं किसी का गुरु नहीं बना। मैं पूरे जगत् के शिष्य के रूप में रहता हूँ और सभी से मैं क्या कहता हूँ कि, 'भाई, आप लघुतम बनो।' जिसे गुरु बनना हो उसे बनने दो पर वे गुरु खुद कैसे पार उतरेंगे और औरों को पार उतारेंगे? उन गुरु को साथ में गुरुकिल्ली रखनी पड़ेगी, तभी खुद पार उतरेंगे और दूसरों को पार उतार सकेंगे। ज्ञानी उसे गुरुकिल्ली देते हैं, लघुतम बनने की गुरुकिल्ली देते हैं, उसके बाद गुरु बना जा सकता है। नहीं तो इस काल में गुरु बनना तो अधोगति में जाने की निशानी है। गुरु तो द्वापर-त्रेता में थे जबकि अब? अभी तो इस गुरु के पास गुरुकिल्ली ही नहीं होती हैं। अतः गुरुओं से मैं क्या कहता हूँ कि, 'गुरु मत बन बैठना। वर्ना डूब जाएगा और दूसरों को भी डूबोएगा। मेरे पास से गुरुकिल्ली ले जाना।' गुरुकिल्ली रखनी पड़ती है। जब हम 'ज्ञानीपुरुष' गुरुकिल्ली देते हैं, तब उसका काम बनता है। गुरु 'सर्टिफाइड' होना चाहिए और साथ-साथ उसके पास गुरुकिल्ली होनी चाहिए।
गुरुकिल्ली अर्थात् ? प्रश्नकर्ता : गुरुकिल्ली अर्थात् क्या?
दादाश्री : गुरु को इतना समझना चाहिए कि 'मैं जो इन लोगों का गुरु बन बैठा हूँ, तो मुझे कौन सा रास्ता अपनाना चाहिए ताकि मुझे नुकसान न हो और इन लोगों को फायदा हो?' इसके लिए उनके गुरु उन्हें सिखाते हैं कि 'तू लघुतम रहना।' लघुतम रहकर गुरुपना करना। हाँ, यानी यही गुरुकिल्ली है वर्ना अगर गुरुपने में गुरुतम बन जाएगा तो मारा जाएगा। यदि लघुतम रहे न, और फिर गुरुपना या कुछ भी करे, तो वास्तव में उसके फलस्वरूप उसे गुरुतम मिलता है लेकिन यों अभी वह कर रहा है लघुतम!