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[५] मान : गर्व : गारवता
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न? मद के आधार पर ही टिके हुए हैं। मद! अगर वह आधार नहीं होगा तो कोई टिक पाए, ऐसा नहीं है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन ये सब चीजें, 'कंट्रोल' में आ सकती हैं। लेकिन लोभ 'कंट्रोल' में नहीं आ सकता न?
दादाश्री : लेकिन लोभ करनेवाला 'कंट्रोल' में आ जाए तो समझो सबकुछ 'कंट्रोल' में आ गया न! मैंने थोड़े ही किसी को भी लोभ निकालने के लिए कहा था? मैंने क्या लोभ निकालने को कहा है ? लोभ करने वाले को पकड़ा, और एकदम से गद्दी पर से उठा दिया, कि सबकुछ गायब हो गया, एकदम से! राजा मरा कि पूरी सेना में भगदड़! सेना में बात तो चलेगी न, कि राजा मर गए! उसके बाद कोई खड़ा नहीं रहता। यानी राजा पकड़ा जाना चाहिए, बस! अर्थात् मद होगा तो लोभ करेगा न! नहीं तो लोभ नहीं करेगा न! मद यदि चला जाए तो लोभ बिल्कुल भी नहीं रहेगा। इन गरीबों को बेचारों को कोई लोभ ही नहीं है न! क्योंकि मद नहीं तो लोभ कैसा?
मान, वह हिंसक भाव ही ऐसा है, क्रोध-मान-माया-लोभ वगैरह सब हिंसक भाव ही हैं। ये क्रोध-मान-माया-लोभ सब हिंसा ही माने जाते हैं। कपट बहुत बड़ी हिंसा मानी जाती है। माया अर्थात् कपट। क्रोध तो खुली हिंसा, ओपन हिंसा है।
प्रश्नकर्ता : आपने कहा है न, कषाय में हिंसक भाव होते हैं, तो मान का हिंसक भाव कैसा होता है ? वह समझाइए।
दादाश्री : मान खुद ही हिंसक भाव है। मानी इंसान दूसरों की हिंसा करता है। वह तो उसके सामने यदि कोई ज़रूरतमंद हो, कोई स्वार्थी हो, मतलबी हो, तो वह चला लेता है लेकिन और किसी को तो मानी इंसान कैसा लगता है ? अब मान में क्रोध भरा हुआ है ही। तिरस्कार रहता ही है। मान का मतलब ही है तिरस्कार! 'मैं कुछ हूँ' समझे कि तिरस्कार करता है लोगों का। मान का मतलब ही है तिरस्कार और अभिमानी तो बहुत तिरस्कार करता है।