________________
[५] मान : गर्व : गारवता
३३९
नहीं होता, गारवता नहीं होती, अंतरंग स्पृहा नहीं होती, उन्मत्तता नहीं होती।
प्रश्नकर्ता : वह तो, जब बहुत आगे बढ़ जाएँगे तब ये सब जाएँगे।
दादाश्री : नहीं। लेकिन वे चले जाएँ, उसके बाद ही ज्ञानी कहलाते हैं। इनके चले जाने के बाद ही हम ऐसा कह सकते हैं कि 'टेपरिकॉर्डर' बोल रहा है। वर्ना ऐसा इस दुनिया में कोई नहीं कह सकता कि 'टेपरिकॉर्डर बोल रहा है'। खुद की वाणी अच्छी हो न, तो 'मैं कितना अच्छा बोला, कितना अच्छा बोला' कहता रहता है। जबकि इसे हम 'टेपरिकॉर्ड' कहते हैं। क्योंकि मालिकी रहित बात है यह सारी। यानी गर्व गारवता कुछ भी नहीं रहा न! कुछ है ही नहीं, झंझट ही नहीं न! बंधन सिर्फ कितना है ? इतना ही, कि पूर्वजन्म में ऐसी कुछ भावना की होगी कि 'यह जो सुख मैंने प्राप्त किया है, वह सभी लोग प्राप्त करें।' उसी के लिए यह क्रिया है। उस भावना का फल है यह।
अर्थात् यह अलौकिक कहलाता है। यह लौकिक नहीं कहलाता। यहाँ तो हमारी वाणी, वर्तन और विनय, ये तीनों चीजें मनोहर हैं, मन का हरण करें, ऐसे हैं और कभी न कभी ऐसा होना चाहिए, ऐसा बनना पड़ेगा। वह तो, जो वैसे बन चुके हैं उनके पीछे पड़ेंगे तो वैसा बना जा सकेगा या नहीं बना जा सकेगा?
प्रश्नकर्ता : बना जा सकेगा।
दादाश्री : बस, और कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है हमें। उनके पीछे पड़ना है। अनंत जन्मों का नुकसान एक जन्म में खत्म करना है। इसलिए हृदयपूर्वक संभाल तो रखनी पड़ेगी न? कितने जन्मों का नुकसान है ? अनंत जन्मों का नुकसान !