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[६] लघुतम : गुरुतम
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अतः 'रिलेटिव' में हम लघुतम बनकर बैठे हैं। हम कहें कि, 'भाई, तुझसे तो हम छोटे हैं, तू गाली देता है, मैं तो उससे भी छोटा हूँ। बहुत हुआ तो वह गधा कहेगा।' तो हम तो गधे से भी बहुत छोटे हैं। गधा तो 'हेवी लोड' है न! और हममें तो 'लोड' है ही नहीं इसलिए यदि गाली देनी हो तो मैं लघुतम हूँ। लघुतम तो आकाश जैसा होता है। आकाश परमाणु जैसा होता है। लघुतम को मार स्पर्श नहीं करती, गालियाँ स्पर्श नहीं करतीं, उसे कुछ भी स्पर्श नहीं करता।
खास तौर पर कहने का भावार्थ इतना है कि यदि तुझे कोई रौब रखना है तो मैं लघुतम हूँ और तुझे मेरा रौब रखना हो तो मैं गुरुतम हूँ।
लघुता ही ले जाती है, गुरुता की ओर हमें कोई नालायक कहे तो फिर नालायक को झगड़ा करने को रहा ही नहीं न? नालायक अर्थात् लघुतम ही रहे न! यानी यह जगत् क्या एक ही तरह की वंशावली है ? सभी पहले से ही चली आई हैं और कोई नालायक हैं ही नहीं लेकिन यह तो, लायक इन्हें नालायक कहते हैं जबकि वे नालायक इन लायकों को ही नालायक कहते हैं। उसकी फिर मैंने जाँच की है। यह तो, आमने-सामने नालायक कहते हैं। अतः जल्दी से इसका पूरा न्याय हो सके, ऐसा नहीं है।
प्रश्नकर्ता : लघुतम ही न्याय है।
दादाश्री : हाँ, लघुतम ही न्याय है, बस। लघुतम में आए कि वे सभी सीधे। फिर परेशानी ही नहीं न! और जो-जो लायक हैं, उन्हें तो आप लघुतम करने जाओगे, तब भी वे आपको गुरुतम की ओर ले जाएँगे।
लाचार होने के बजाय... तो कभी न कभी ऐसा लघुतम भाव करना पड़ेगा न? वर्ना आखिर में तो इंसान जब स्वास्थ्य से बहुत परेशान हो जाता है और उसे बहुत दुःख पड़ता है, तब इंसान डॉक्टर के सामने लाचारी दिखाता है या नहीं दिखाता?