________________
२९२
आप्तवाणी-९
और तीन हज़ार की घड़ी डालकर, यों ज़रा बाँहें ऊपर रखता है ताकि लोगों को दिखाई दे। फिर कोई पूछे, 'कैसे हो सेठ?' तो यह मान दिखता है हमें, खुल्लमखुल्ला। क्योंकि 'इगो विथ रिच मटीरियल्स,' उसे मान कहते हैं। वह अच्छी-अच्छी आकर्षक चीजें पहने रहता है, उसे मान कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : अहंकारी और मानी के बीच क्या फर्क है?
दादाश्री : अहंकारी को अपमान का भय नहीं लगता। मानी को अपमान का भय रहता है। जो मानी होता है, उसे अपमान का भय लगा रहता है। जबकि अहंकारी को अपमान का भय नहीं लगता। मान हो तो अपमान लगेगा न! जहाँ मान ही नहीं हो, वहाँ पर?
प्रश्नकर्ता : लेकिन जब अहंकार का खंडन होता है, तब उसे अपमान महसूस होगा न?
दादाश्री : नहीं। इसे तो अहंकार भग्न होना कहते हैं लेकिन यदि वह मानी होगा तभी अपमान लगेगा।
जबकि अभिमान किसे कहते हैं ? खुद के पास कोई साधन हो, तो लोगों को वे सब बताता है। उसे अभिमान कहते हैं। वह तो हर एक व्यक्ति कह देता है। हर एक व्यक्ति के पास जो कुछ भी होता है, उसे बताए बगैर रहता नहीं है। यानी अभिमान कब कहलाता है ? कि अहंकार तो है ही, लेकिन दुकान पर जाए तब रास्ते में जाते वक्त वह व्यक्ति हमसे कहेगा कि, 'रुकिए।' 'भाई, क्या है जो रुकें? जल्दी है न!' तब वह कहेगा, 'यह हमारा मकान है। ये चार बिल्डिंगें, ये दो और वे दो हमारी।' वह सारा अभिमान कहलाता है। 'भाई, अभी मुझे जाना है, तू क्यों बातें कर रहा है? तू अपनी तरफ से क्यों माथापच्ची कर रहा है?' लेकिन वह अपना अभिमान बता रहा है। हम नहीं पूछते फिर भी बताता है कि कितना सुंदर है ! उसका क्या कारण है ? उसे अभिमान है। पूछने पर जवाब दे तो वह अलग चीज़ है और बगैर पूछे जवाब दे, वह अभिमान! उसके मन में होता रहता है कि 'कब कह दूं।' वह है अभिमान।