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[५] मान : गर्व : गारवता
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प्रश्नकर्ता : जब ग्रुप फोटो खिंचवाना होता है, तब अभिमान तुरंत ही दिख जाता है।
दादाश्री : हाँ। अरे, फोटोग्राफर ही समझ जाता है कि यह अभिमान में आया है, और वह फोटोग्राफर मुझे देखते ही तुरंत स्विच दबा देता है। वह जानता है कि ये बिल्कुल अभिमान रहित दिख रहे हैं और अभिमानी तो यों सतर्क हो जाता है उस क्षण। अरे, सतर्क किसलिए हो जाता है ? जबकि हममें साहजिकता होती है।
प्रश्नकर्ता : अभिमान अहंकार जैसा ही है न?
दादाश्री : नहीं। अहंकार तो अच्छा है। अहंकार तो निकाला जा सकता है जबकि अभिमान तो महादुःखदाई है। कुदरत का धंधा क्या है ? अभिमान को उतारने का ही धंधा है। अभिमान बढ़ा कि गिर ही जाता है। लगाती है झापट ऊपर से! अहंकार में हर्ज नहीं है।
अभिमान और अहंकार में क्या फर्क है ? 'मैं चंदूभाई,' वह अहंकार है। जहाँ आप नहीं हो वहाँ आरोपण करते हो कि यह मैं हूँ, वह अहंकार है और यह मेरा बंगला, यह मेरी मोटर, ऐसा दिखाए, वह अभिमान! तो फिर सफेद बाल क्यों नहीं दिखाते? 'देखो, मेरे सफेद बाल आ गए, देखो!' लेकिन अभी तो लोग काले कर लाते हैं वापस, हं! रंग लेते हैं! अर्थात् अहंकार तो नासमझी से हुआ है और अभिमान तो समझदारी से। खुद गर्वरस लेता है कि 'देखो, यह देखो, यह मेरा बाग देखो, यह देखो, वह देखो।' तब हम जान जाते हैं कि अभिमान चढ़ा है इसे।
अब कोई व्यक्ति भजन गाए, और हम खुश हो जाएँ तो वह और दो-तीन भजन गा लेता है। तो वह भी अभिमान !
__ अभिमान आपको समझ में आया न? कि पौद्गलिक 'वेट' को खुद का 'वेट' मानना। 'मैं बड़ा हूँ' ऐसा मानना, और सोने के आभूषण, घड़ी, घर वगैरह सबकुछ पौद्गलिक 'वेट' है और इन्हें खुद का 'वेट' मानना, वह अभिमान! इस बंगले के 'वेट' को वह खुद का 'वेट' मानता है। लोग तो, 'ये मेरे बंगले देखो और यह देखो, वह देखो, यह मेरा