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आप्तवाणी-९
वहाँ तक पहँच गया। गड्ढे में देखा इसलिए मालिक जान गया कि अब तो यह कैसे निकलेगी? फिर मालिक घास के हरे गट्ठर लाकर आवाज़ देता है। किनारे पर रहकर वह कहता है, 'ले, ले!' भैंस ऐसे कान लगाती है और ऐसे देखती भी है लेकिन फिर मुँह फिर देती है, उठती नहीं है। रोज़ हरी घास के लिए भागती थी लेकिन अभी वह ध्यान ही नहीं दे रही? तो 'अंदर तुझे क्या स्वाद आ गया? फ्रिज की ठंडक!' और यहाँ से उठने का नाम भी नहीं। फ्रिज में बैठी हुई है, तो उठेगी? ऐसी गर्मी में एयर कंडिशनर में से निकलेगी क्या? गारवता कहलाती है यह। फिर मालिक जान जाता है कि हरा गट्ठर डाल रहा हूँ फिर भी आकर्षित नहीं हो रही, तो और वह अधिक सुख देने से उठेगी। मालिक समझ गया कि अभी उसे मस्ती है, किसी और लालच के बिना निकलेगी नहीं इसलिए फिर बिनौले ले आता है और गुड़ दिखाता है। जो चीजें कभीकभार ही खिलाता है न, वे दिखाता है। तब वह भैंस भी समझ जाती है कि 'हं, वह है। फिर भी इसके जैसा तो नहीं ही है न!' बहुत दिखलाए, ऐसी अच्छी चीजें दिखलाए कि जिन्हें देखते ही इच्छा हो जाए, भैंस वह समझ भी जाती है कि गुड़ है लेकिन गारवता में से उठे तब न? अतः उस पर भी ध्यान नहीं देती, किसी भी चीज़ पर ध्यान नहीं देती क्योंकि वहाँ जो सुख मिलता है, वैसा किसी और चीज़ में नहीं है इसलिए कीचड में से नहीं उठती है। यों देख लेती है, लेकिन बिल्कुल भी हिलती-डुलती नहीं। यों ध्यान ही नहीं देती, बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती। कहेगी, 'ऐसा सुख छोड़कर कौन जाए अब?!' वही गारवता!
गारवता का सुख इसे कहते हैं। इसी तरह यह दुनिया गारवता में ही सुख मान बैठी है, वे गारवता में से हिलते ही नहीं न! ये स्त्री-पुरुष उठते ही नहीं हैं न! राम तेरी माया! गारवता में पड़े हैं। कैसे इस गारवता में से उठे? इसी को फ्रिज मान लिया है। आपको यह समझ में आया न, गारवता किसे कहते हैं? जब 'ज्ञानीपुरुष' समझाएँ तब गारवता समझ में आती है इसलिए इसका ‘एक्जेक्ट' अर्थ समझ लेना हं! कृपालुदेव क्या कहना चाहते हैं, वह। जो ठंडक मिल गई है उस ठंडक के साथ तुलना की है। लोग संसार में गारवता में जो बैठे हैं, तो कितने ही सत्