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[५] मान : गर्व : गारवता
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ढूँढती हैं, फ्रिज ढूँढती हैं ! वे पेड़ ढूँढती हैं, दूसरा कुछ ढूँढती हैं। गायों के मुकाबले भैंसें बहुत गरम होती हैं, इसलिए उनसे ताप सहन नहीं होता। गाय-बकरियाँ सब सहन कर लेते हैं, लेकिन भैंस से सहन नहीं होता। इसलिए फ्रिज ढूँढती हैं। अतः गर्मियों के दिनों में भैंस खोजती है कि 'कौन सी जगह पर ठंडक है?' लोग नहीं ढूँढते? बहुत गर्मी लगने पर कहेंगे, 'चलो, कोई एयर कंडीशनर रूम में घुस जाएँ।' इसी तरह भैंस को भी पता चलता है। इसलिए जहाँ पानी देखे, वहीं घुस जाती है। और यदि घुसने पर कीचड़ देखे, तो बस वहीं अपना स्थान बना लेती है।
अतः भैंस अंदर कीचड़ में जाकर बैठ जाती है। गड्ढे में पानी होता है। गर्मियों के दिन होते हैं इसलिए पानी का ऊपरी भाग गरम हो जाता है लेकिन जो कीचड़ है, वह अंदर से ठंडकवाला होता है। भैंस उसमें घुस जाती है, और बैठ जाती है चैन से। यहाँ तक कीचड़ होता है, लेकिन अंदर बैठने से कीचड़ ऊपर आ जाता है। ऊपर आ जाने पर जैसे पूरा कोट पहन लिया हो न, वैसे चारों तरफ कीचड़ फैल जाता है। ऐसा लगता है जैसे पूरा शरीर फ्रिज में रखा हो। ऐसी ठंडक लगती है जैसे फ्रिज में बैठी हो न, वैसा लगता है उसे। कीचड़ यहाँ पूरे शरीर में यहाँ गले तक आ जाता है, और सिर्फ गरदन ही बाहर रखती है और यों देखा करती है बाहर सभी ओर। अंदर बैठ जाती है इसलिए वह जो कीचड़ था न, उस कीचड़ का कवर, वह फ्रिज! क्योंकि कीचड़ की बहुत ठंडक होती है, इसलिए वह एकदम बर्फ जैसा लगता है। उसे ऐसा लगता रहता है जैसे खुद बर्फ में बैठी हो। भैंस इस एयर कंडिशनर में बैठती है और ये लोग इंसानों के एयर कंडिशनर में बैठते हैं। समझ में आया न? उसे ऐसा लगता रहता है कि जैसे वह एयर कंडिशनर में बैठी
बोलो अब, फ्रिज में बैठी हुई भैंस, भले ही उसे कितना भी सोना दें तो भी वह निकलेगी नहीं। अब मालिक हमेशा तीन बजे दुहता था, दूध निकालता था। उस दिन तो मिली नहीं इसलिए मालिक ढूँढते-ढूँढते