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आप्तवाणी-९
निर्मोहीपने का अहंकार रहा, निर्मानीपने का अहंकार रहा। वह अहंकार भी अंत में निकालना तो पड़ेगा न! ____ मानी के अहंकार को तो 'ज्ञानी' खत्म कर देते हैं लेकिन निर्मानी का अहंकार तो भगवान से भी खत्म नहीं हो सकता, ऐसा सूक्ष्म अहंकार है। वह सूक्ष्म अहंकार उत्पन्न हो गया तो मारे जाओगे इसलिए किसी से पूछकर करना।
इसलिए कृपालुदेव ने लिखा है कि इस जगत् में मोक्ष किस वजह से नहीं हो पाता? तब कहते हैं कि लोभ वगैरह का कोई झंझट नहीं है लेकिन यदि मान नहीं होता तो यहीं पर मोक्ष हो जाता!
यह तो लोगों को उत्तेजित करने के लिए लिखा है, 'व्यू पोइन्ट' दिखाया है, बात करेक्ट है। अज्ञानी लोगों को दिखाया है कि बाकी कुछ भी होगा न, तो देख लेंगे लेकिन मान पर ही लक्ष्य रखना। मान ही इस संसार का मुख्य कारण है।
सत् पुरुष वही हैं जिन्हें... कृपालुदेव ने तो क्या कहा है कि सत् पुरुष वही हैं जिन्हें निश दिन आत्मा का उपयोग है। यानी निरंतर कभी भी उपयोग नहीं चूकते, एक सेकन्ड के लिए भी नहीं चूकते, उन्हें सत् पुरुष कहते हैं। फिर, जो शास्त्र में नहीं है, सुना नहीं गया है, फिर भी अनुभव में आए, ऐसी जिनकी वाणी है। जिनकी वाणी, ऐसी होती है जिससे कि नए शास्त्र लिखे जाएँ। जिन्हें निश दिन आत्मा का उपयोग है। उनका एक ही शब्द यदि सुनने में आ जाए तो मोक्ष में चला जाए, क्योंकि वचनबल सहित है। अंतरंग स्पृहा नहीं, ऐसा जिनका गुप्त आचरण है। ऐसे तो बाकी कईं अनंत गुण हैं! वहाँ सत् पुरुष हैं।
कृपालुदेव ने यहाँ तक लिखा है कि,
'संसार केवल अशाता मय (दुःख-परिणाममय) है...... एक अंश शाता (सुख-परिणाम) से लेकर उसके पूर्णकामता होने तक की सर्व