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आप्तवाणी - ९
वश में रहते हों, वे कैसे 'टाइट' होंगे ? ! लेकिन नहीं, वास्तव में लघुता वहीं पर होती है! हम तो छोटे बालक जैसे हैं ।
... पोतापणां नहीं
फिर तीसरा कौन सा वाक्य लिखते हैं ?
प्रश्नकर्ता : पोतापणुं नहीं ।
दादाश्री : पोतापणुं यानी 'मैं हूँ और यह मेरा है !' पोतापणुं नहीं है इसलिए यह शरीर खुद का है ही नहीं । यह शरीर ही मेरा नहीं है इसलिए शरीर से संबंधित कोई भी चीज़ मेरी है ही नहीं । यह मन मेरा नहीं है, यह वाणी मेरी नहीं है । यह जो बोल रहे हैं न, वह भी मेरी वाणी नहीं है। यह ऑरिजिनल टेपरिकॉर्डर बोल रहा है । वह वक्ता है, आप श्रोता हो और मैं ज्ञाता - दृष्टा हूँ। यह हम तीनों का व्यवहार हैं । वाणी के हम मालिक नहीं हैं । इस शरीर के हम मालिक नहीं हैं । इस मन के हम मालिक नहीं हैं।
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गर्व मिठास से खड़ा है संसार
प्रश्नकर्ता : गर्व क्या है ? गर्व और अभिमान में कोई फर्क है ?
दादाश्री : अभिमान और गर्व दोनों आमने-सामने तराजू में रखें तो कितना होगा? एक तरफ तराजू में गर्व रखें और एक तरफ अभिमान रखें तो क्या होगा? क्या एक समान वज़न होगा ? अभिमान एक पाउन्ड होगा और गर्व चालीस पाउन्ड होगा ।
प्रश्नकर्ता : किस तरह से, वह समझाइए ।
दादाश्री : ऐसा है, लोग तो अभिमान को नहीं समझते, गर्व को नहीं समझते। गर्व का मतलब अभिमान नहीं है । अभिमान शब्द अलग है, गर्व अलग, अहंकार भी अलग ।
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प्रश्नकर्ता : तो गर्व अर्थात् मैं पद ?
दादाश्री : नहीं। मैं पद का मतलब अहंकार है । 'मैं चंदूभाई हूँ'