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[५] मान : गर्व : गारवता
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यदि टेढ़ा करे न, वह अपमान करे न, फिर भी हम उस बेचारे का रक्षण करेंगे। आपकी समझ में आया न?
...उन्मत्तता नहीं फिर दूसरा कौन सा गुण? प्रश्नकर्ता : उन्मत्तता नहीं।
दादाश्री : हाँ। उन्मत्तता यानी क्या? आपको समझ में आता है ? मैं आपको आपकी भाषा में बता दूँ।
___लोग तो कैसा अहंकार करते हैं ? यहाँ से ऐसे जा रहा हो न, तब सीधा 'स्ट्रेट फॉरवर्ड' जा रहा हो, ऐसे साहजिक तरह से तरीके से चलता है, और जब वापस आता है, उस घड़ी हमें लगता है कि इसमें क्यों बदलाव हो गया लगता है? 'फेस' बदला हुआ लगता है हमें। लौटते हुए रौब से आता है। तब हम जान जाते हैं कि यह कुछ बदलाव हुआ है, इसे 'इफेक्ट' है कोई।
तब हम उसे कहें कि, 'आओ-आओ, ज़रा चाय पीकर जाओ।' तो हम उसका पता लगाने के लिए चाय पिलाते हैं, उसके रौब के कारण नहीं पिलाते। जबकि वह मानता है कि उसके रौब के कारण चाय पिला रहे हैं। हम चाय पिलाकर फिर पूछे कि, 'किस तरफ गए थे?' तब वह कहता है, 'वे पाँच हजार रुपये लेने थे न, वह ले आया।'
जेब में पाँच हजार आए, तो वापस यह चढ़ा! उन्मत्त हो जाता है। उसमें रोग घुसा है यह, उन्मत्तता का रोग! यानी कि बैंगन हो गया फिर से 'टाइट'! वर्ना 'ऐसा' हो जाता है बैंगन।
बोलो अब, वह पाँच हज़ार यदि इंसान को 'टाइट' कर देता है, इंसान उन्मत्त हो जाता है, तो हमें तो, 'ज्ञानीपुरुष' को तो संपूर्ण भगवान ही वश में हो चुके हैं ! बोलो, हममें कितना ‘टाइट' रहना चाहिए?! लेकिन फिर भी उन्मत्तता नहीं है ज़रा भी। यह आश्चर्य ही है न! पाँच हज़ार यदि इतना 'टाइट' करे, तो भगवान-पूरा तीन लोक के नाथ, जिनके