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[५] मान : गर्व : गारवता
आपको 'ज्ञान' देते हैं, तब निर्अहंकारी बन जाते हो । निर्मानी (पना) तो बहुत बड़ा अहंकार है । वह बला बहुत बड़ी है। यह मान की बला तो अच्छी । यह बला भोली है । कोई कह भी देगा कि, ‘अरे, छाती क्यों फुला रहे हो इतनी ?' कहता है या नहीं कहता? अरे, आप ही उसे कहो न कि, 'मैं काम करता हूँ फिर भी यों बगैर छाती फुलाए घूमता हूँ तो आप क्यों छाती फुला रहे हो?' लेकिन निर्मानी को तो कोई कहनेवाला ही नहीं न ! मान-वान कुछ भी नहीं । निर्मानीपना तो सूक्ष्म अहंकार है, यानी क्या कि ऊपर के सींग काट दिए लेकिन अंदर के सींग बाकी बच गए। अंदर के सींग भी नहीं चलेंगे और ऊपर के सींग भी नहीं चलेंगे ! अंदर के सींग अंदर की चुभन उत्पन्न करते हैं और बाहर तो चुभन नहीं होती है न, उन्हें। उन सब को साफ-सूफ कर देते हैं, नौकर-चाकर होते हैं, वे मक्खी-मच्छर निकाल देते हैं। उससे फिर बाहर काटता नहीं है कुछ भी लेकिन अंदर की चुभन कैसे छोड़ेगी आपको ? अंदर की चुभन ही तो वास्तव में चुभन है। आपने देखी है या नहीं देखी अंदर की चुभन ?
प्रश्नकर्ता: देखी है, अनुभव की है।
दादाश्री : अत: निर्अहंकार बनना पड़ेगा, निर्मानीपना नहीं चलेगा। प्रश्नकर्ता : वह तो दादा, एक दूसरा शब्द है, पर्याय की तरह, निर्मोही ।
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दादाश्री : निर्मोही शब्द 'फुल' है ही नहीं । निर्मोही यानी संपूर्ण मोह रहित, ऐसा नहीं है । निर्मोही, वह संपूर्ण मोह रहित व्यक्ति के लिए नहीं कहा जा सकता । जिसका मोह क्षय हो गया है, उसे निर्मोही नहीं कह सकते। यानी कि निर्मोही, वह मोह-क्षय दशा नहीं है। सिर्फ अनासक्त शब्द ही चलाया जा सकता है, निर्मोही नहीं । निर्मोही कब तक? अहंकार करके जिसने मोह दूर किया है, उसे निर्मोही कहते हैं । अहंकार करके जिसने मान दूर किया, उसे निर्मानी कहते हैं। यानी अहंकार तो खुद है ही, और बाकी का सब कम किया। किसी ने गाली दी तो कहेगा 'मुझे क्या लेना-देना?' । लेकिन वही का वही अहंकार तो खड़ा ही रहा ।