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[५] मान : गर्व : गारवता
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पड़ता है। तो देख, यह दुनिया तो देख! और हम कहते हैं कि 'मैं किसी का पहना हुआ नहीं पहनता।' ऐसी दुनिया चलती है अंदर। मैंने देख लिया सभी कुछ। आप पहचान भी जाते हो, तब आपको मन में होता भी है कि 'यह व्यक्ति जो कोट पहनकर घूम रहा था।' 'यह कोट मेरे जैसा है और यहाँ पर दाग़ था, वही का वही दाग़ भी है यह।' लेकिन उस व्यक्ति से क्या कह सकते हैं हम? ऐसी यह दुनिया है।
राई भरी दिमाग़ में लोग क्या कहते हैं ? 'तेरे दिमाग़ में आलू भरे हैं।' हाँ, किसी के दिमाग़ में राई भरी होती है, किसी के दिमाग़ में आलू भरे होते हैं!
प्रश्नकर्ता : दादा, राई क्यों कहा होगा?
दादाश्री : वह ऐसे बोलता है कि आग जैसा लगता है। ऐसे बोलता है कि हमारा सिर दुःख जाए, हेडेक हो जाए।
प्रश्नकर्ता : ऐसी राई तो सभी के दिमाग़ में भरी ही होती है।
दादाश्री : ऐसा?! सच कह रहे हो। गुजरात में राई सस्ती है न! इसलिए लोग खाते हैं न! अब राई उतर गई या नहीं उतर गई?
प्रश्नकर्ता : हाँ, निकल गई। दादाश्री : निकल गई, बस। यानी निबेड़ा आ गया।
प्रश्नकर्ता : राई भरी है यानी अभिमान अधिक होता है, उसी को कहते हैं न कि राई भरी हुई है?
दादाश्री : अभिमानी अलग और राई वाले अलग! राई वाले के पास कुछ भी जायदाद नहीं होती। अभिमान करने जैसा नहीं होता तब भी राई बहुत होती है, दिमाग़ में राई भरी होती है जबकि अभिमान तो कौन कर सकता है? यहाँ पर जिनके पाँच-दस बड़े-बड़े मकान हों, वह अभिमान कर सकता है। उसके पास ऐसी कुछ सहूलियत होती है, एक छोटे गाँव की एस्टेट वगैरह कुछ होता है, वह अभिमान करता है। यह