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आप्तवाणी-९
तो कोई भी एक फ्लेट हो पाँच-पच्चीस लाख का, और राई चढ़ाए उसका क्या अर्थ है फिर?! सरकार चाहे कितना भी परेशान करे, फिर भी जिसके वैभव में अन्य कोई नुकसान नहीं होता, अगर वह व्यक्ति कभी अभिमान करे तो चल सकता है।
दूसरे लोगों को मान रखने का अधिकार है कि भाई देखो, मेरा घर का फ्लेट है, घर की गाड़ी है। ऐसा मान रखने का अधिकार ज़रूर है। बाकी, अभिमान रखने का कोई कारण नहीं है। अभिमान तो, स्टेट हो, तो अभिमान से क्या फायदा निकाला? स्टेट चली गई न, बल्कि?!
और ऐसा अभिमान रखने से बड़ा ताज कैसा होता है? कँटीला ताज होता है। कब कोई सेना आ जाएगी और कब चढ़ाई कर लेगी वह कहा नहीं जा सकता। इसके बजाय तो बगैर ताज के अच्छा। यह तो, अभी इसे फ्लेट कहते हैं, वर्ना तो माला कहते थे। चिड़ीयाँ का माला (घोंसला) होता है न? या कबूतर का माला, कोई चिड़ीयाँ का माला, तोते का माला! डबल रूम हो, फिर भी दीवानखाना कहते हैं।
मान नापने का थर्मामीटर प्रश्नकर्ता : बाहर के 'मटीरियल्स' के मान के अलावा भी मान होता है न? इन साधु, संन्यासियों के पास कोई मटीरियल्स नहीं होते, फिर भी उनमें मान तो ज़बरदस्त होता है। वह कौन सा मान?
दादाश्री : उनमें जो मान है वह, 'कोई पुस्तक-शास्त्र जानता हूँ, उसका होता है। यह भी एक प्रकार की जायदाद ही कहलाती है न? 'मैं शास्त्र वगैरह जानता हूँ,' वह जायदाद ही कहलाती है न?! वे सभी 'मटीरियल्स' ही कहलाते हैं। वह सब मान ही होता है।
प्रश्नकर्ता : और ऐसा भी होता है कि कोई कुछ भी नहीं जानता, फिर भी उसे बहुत मान रहता है।
दादाश्री : हाँ, ऐसा होता है। क्योंकि, वह मान बैठा है न! कोई भी व्यक्ति मान दे तो वह उसे स्वीकार नहीं करे, मन से स्वीकार नहीं करे तो फिर उसका पारा नहीं चढ़ता। यानी वह अपने आप मान बैठा