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[५] मान : गर्व : गारवता
फिर भी, हमें उस तरह से कदम उठाने चाहिए कि लोगों को दुःख न हो।
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प्रश्नकर्ता : उस हिसाब से तो पूरा संसार अहंकार का ही परिणाम है, 'मैं चंदूभाई हूँ' पूरा संसार उसी का परिणाम है न ?
दादाश्री : लेकिन अब इस 'ज्ञान' के बाद आपका यह अहंकार गया। यदि वापस अहंकार रहता तो परिणाम उत्पन्न होते रहते न ! इस 'ज्ञान' के बाद तो नए परिणाम उत्पन्न ही नहीं होते न ! और पुराने परिणाम खत्म ही होते जाते हैं, सिर्फ पुराने ही खत्म हो जाएँगे। तब फिर हल आ गया। यह टंकी नई नहीं भरती है। किसी की टंकी पचास गेलन की होती है और किसी की पच्चीस लाख गेलन की होती है । बड़ी टंकी हो तो देर लगती है लेकिन जिसकी खाली होने लगी है, उसे क्या
प्रश्नकर्ता : लेकिन टंकी खाली होते-होते तो फिर वह बाढ़ की तरह किसी को लुढ़का देता है, किसी से टकरा जाता है और किसी को मार देता है न!
दादाश्री : हाँ, वह सब तो, जो मारता है न, वह तो उसके परिणाम हैं न! उससे हमें क्या लेना-देना? लेकिन किसी को दुःख हो जाए तो उसका प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए ।
स्वमान अर्थात्...
प्रश्नकर्ता : मान और स्वमान के बीच में क्या भेद है ?
दादाश्री : मान अर्थात् 'इगो विथ रिच मटीरियल्स ।' और स्वमान अर्थात् खुद की जो 'क्वॉलिटी' है न, उतना ही मान ! खुद की जो ‘क्वॉलिटी' ‘फिक्स' है उतना ही मान कि ' भई, मैं ग्रेज्युएट हुआ हूँ ।' तो 'ग्रेज्युएट' जितना ही मान । वह स्वमान खुद का, खुद जो है उतनी ही माँग करता है। उससे अधिक नहीं माँगता । स्वमान भंग होता है तब उसे लगता है कि ‘मैं ग्रेज्युएट हूँ फिर भी ये क्या कह रहे हैं ?!' यानी