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[५] मान : गर्व : गारवता
२८९ इनका 'हम' तो, मार खाने से उतर जाता है। जबकि उन लोगों का 'हम' उतारनेवाला कौन? तो 'हम' को फिर सोहम् में ले जाता है।
प्रश्नकर्ता : 'हम' खड़ा होने के लिए उसके पास कुछ होता है ? कुछ सामान होता है किसी प्रकार का?
दादाश्री : कोई भी सामान, जब कोई चीज़ नहीं होती, तब 'हम' खड़ा होता है। क्योंकि जीए किस आधार पर? इसलिए 'हम'...! पहले चीज़ों के आधार पर जीता था। वह अब इस 'हम' के आधार पर जीवित रहता है कि 'हम, हम।' और खाने-पीने को तो अकेला हो तो भी मिल जाता है। पूर्व का पुण्य तो होता है न? खाने-पीने का सब मिल जाता है, और फिर 'हम' तो बढ़ता ही जाता है। 'कैसा हमें, हमें सबकुछ मिलता है, कोई चीज़ न मिले, ऐसा नहीं है!' अरे, मिलती है, लेकिन वह कहाँ से मिली, उसका तुझे क्या पता चलेगा? लेकिन फिर 'हम' बड़ा हो जाता है, उसे कौन निकालेगा?
प्रश्नकर्ता : तो 'हम' किस तरह से जा सकता है?
दादाश्री : 'हम' तो कहीं जाता होगा भला? 'हम' तो अपने आप ही खड़ा किया हुआ है। जाता होगा? अहंकार चला जाता है, लेकिन 'हम' नहीं जाता। अहंकार अर्थात् जहाँ पर खुद नहीं है वहाँ पोतापj का आरोप करना, वह है अहंकार। वह अहंकार चला जाता है। खुद करता नहीं है और 'मैं करता हूँ' कहता है, वही अहंकार । बाकी, 'हम' तो उसका खुद का खड़ा किया हुआ बच्चा है। क्या वह जाएगा? 'हम, हम' चलता ही रहता है।
प्रश्नकर्ता : वह 'हम' निकल सकता है ? उसका कोई उपाय है क्या?
दादाश्री : उसका उपाय नहीं है। वह तो अधोगति में जाकर और वहाँ पर मार खाता रहे तब, वहाँ पर 'हम' कुचल जाता है।
'हम' किस आधार पर उत्पन्न होता है? जब उसके पास सभी