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[५] मान : गर्व : गारवता
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प्रश्नकर्ता : यह, 'हम' कहते हैं, वह भी अहंकार ही कहलाता है न?
दादाश्री : 'हम' अलग है और अहंकार अलग चीज़ है।
ऐसा है न, लोगों ने तो इसे मुख्य माना कि मोक्ष में जाते हुए बीवी-बच्चे ही बाधक हैं। अरे, क्या सिर्फ ये ही बाधक हैं ? और भी कितनी सारी चीजें बाधक हैं। ये बीवी-बच्चे बेचारे क्या बाधक होते होंगे? वे खुद के बिस्तर में सो जाते हैं, उसमें हमें क्या बाधक हुआ? कोई अपने पेट में घुसकर सो जाते हैं? अपने पेट में घुसकर सो जाएँ, तो बाधक कहा जाएगा। हर कोई अपने-अपने बिस्तर में सो जाते हैं, उसमें अपना क्या गया?
वहाँ वे तो अपने पेट में घुसकर परेशान करते हैं, कि 'हम, हम, हमको कैसा?' यह 'हम' नहीं जाता, जहाँ जाओगे वहाँ 'हम' साथ में ही होता है। देखा है आपने 'हम'? लेकिन वह दिखता नहीं है। फिर भी लक्षण पर से पता चलता है कि यह 'हम' आया, आँखों में दिखाई देता है।
ये बाकी सबकुछ छूट गया और 'हम' बचा, वह 'हम' तो बहुत गलत है। उसके बजाय दो पत्नियाँ लेकर घूमे तो अच्छा, तब 'हम' चला जाएगा। गालियाँ खाए तो 'हम' चला ही जाएगा न! और यह अकेला साँड जैसा, उसे कौन गाली दे? पत्नी नहीं है, किसी के हत्थे नहीं चढ़ता, तब फिर 'हम' बढ़ जाता है और अटकण तो बहुत सारी होती है। मनुष्यों में बहुत अटकण होती है।
और अहंकार तो उत्पन्न की हुई चीज़ नहीं है। वह तो ग्रहित हो गया है। वह खुद ही पकड़ में आ गया है, संयोगों के आधार पर! यानी वह अहंकार तो छूट जाएगा। अहंकार तो 'रोंग बिलीफ' ही है सिर्फ,
और कुछ नहीं। जबकि 'हम', उसकी तो बात ही अलग है। वे 'हम' मैंने देखे हैं सारे। 'हम, हम' गाते रहते हैं। मैं समझ गया कि तुम्हारा क्या होगा फिर? 'रिज़र्वेशन' कहाँ मिलेगा, वह हम तुरंत समझ ही जाते