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आप्तवाणी-९
दादाश्री : जब मान चला जाएगा, तब अपमान सहन करने की शक्ति आ जाएगी। वह तो गुरखा है। 'मान ने' गुरखा रखा है कि यदि कोई अपमान करने आए तो उससे कहता है कि, 'तेल निकाल देना।'
और दूसरा है लोभ । उसने भी एक गुरखा रखा है। उसने कपट को रखा है। उसी को माया कहा गया है। अगर लोभ चला जाए तो माया भी चली जाएगी। क्रोध मान का गुरखा है। 'मूर्ख हो, बेअक़ल हो' किसी ने अगर ऐसा कह दिया तब हमें कहना चाहिए, 'भाई, मैं आज से नहीं, पहले से ऐसा ही हूँ।' ऐसा कहना।
लोग क्रोध को मारते हैं न? कोई लोभ को मार-मारकर कम करता है, तब माया क्या कहती है? माया कहती है कि, "मेरे छः पुत्र हैं, क्रोध-मान-माया-लोभ, राग और द्वेष । ये मेरे छः बेटे और मैं सातवीं, हमें कोई निर्वंश नहीं कर सका है। हाँ, सिर्फ एक 'ज्ञानीपुरुष' ही हमें निर्वंश कर सकते हैं। बाकी, कोई हमें निर्वंश नहीं कर सकता। तू चाहे जितना मेरे क्रोध को मारेगा, तू लोभ को मारेगा, लेकिन जब तक मेरा मान नाम का बेटा जीवित है, तब तक सब जीवित हो जाएँगे।"
'ज्ञानीपुरुष' मान नाम के बेटे को मारें, वह भी मारते नहीं हैं, गद्दी पर से उठाते भी नहीं है। जगह 'चेन्ज' कर देते हैं। यदि मारें, तब तो ऐसा कहा जाएगा कि हिंसा की। 'मार' शब्द आया तो हिंसा की कहा जाएगा। हिंसा नहीं है। अहंकार को वे मारते नहीं है।
___ 'करने वाले' की जगह 'चेन्ज' प्रश्नकर्ता : ये काम-क्रोध-मोह-लोभ और मद, इनमें से खराब चीज़ कौन सी?
दादाश्री : मद। प्रश्नकर्ता : मद सब से अधिक खराब क्यों? लोभ खराब नहीं
है?
दादाश्री : किसके आधार पर टिके हुए हैं, वह देखना चाहिए