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आप्तवाणी-९
सभी ऑफिसरों के पास जाना पड़ता था, इसलिए तुमाखीवालों को देखा था वहाँ पर। ट्रेन में कलेक्टर के सामने फर्स्ट क्लास में नहीं बैठ सकते थे। यों ईमानदार थे। अनुशासन से बाहर नहीं चलते थे लेकिन फिर तुमाखी बेहद थी। कैसी तुमाखी! लोगों को दुतकार-दुतकार कर रख देते थे। हमारे काम पर एक्जिक्यूटिव इन्जीनियर आते थे न, तो हंगामा मचा देते थे और जैसा चाहें उस अनुसार कर देते थे। क्योंकि पावर है न, उनके पास।
हमने देखी थी यह सारी तुमाखी। तो मुझे अभी हँसना आता है, इन बड़े-बड़े कलेक्टरों को देखकर । पहले कैसी तुमाखी रखते थे, जैसे भगवान आ गए हों, वैसी और अभी तो कलेक्टर चप्पल पहनकर निकले और उसके पैर पर अपना बूट पड़े तो 'प्लीज़, प्लीज़' करता है। पहले तो यदि ऐसा हो जाता न, तो हंटर से मारते थे। वह भी वहीं स्टेशन पर ही मारते। जबकि अब तो 'प्लीज़, प्लीज़' करते हैं। ये मार खा-खाकर ऐसे सीधे हो गए हैं ! तुमाखी सारी उतर गई न! गाड़ी में बड़ा कलेक्टर होता था, तब भी कुछ बोल नहीं सकते थे न! और गवर्नर हो तब भी नहीं बोल सकते थे। लेकिन देखो मार खा-खाकर सीधे हो गए! और अब तो कहते हैं, 'हाँ, चलेगा।' पत्नी से भी क्या कहते हैं ? 'हाँ, हाँ, चलेगा, चलेगा।' पहले तो ऐसा नहीं कहते थे कि 'चलेगा,' और अब?
ये सब देखो न एकदम ठंडा हो गया! और अभी तो अगर लोग बड़े आदमियों की भी बुराई करें, तब भी कुछ नहीं। देखो बिल्कुल शांत हो गए न! सीधे हो गए या नहीं हो गए? सीधे हो गए हैं न और बाकी के मार खा-खाकर अभी और भी सीधे हो जाएंगे।
प्रश्नकर्ता : फिर आगे, घेमराजी कैसा होता है? दादाश्री : उस घेमराजी शब्द का क्या अर्थ होता है ? प्रश्नकर्ता : घेमराजी अर्थात् घमंड? दादाश्री : नहीं। वह घमंडी भी अलग है, घेमराजी भी अलग है।