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आप्तवाणी-९
मान्यता ही लगाती है ममता वर्ना संसार में कोई चीज़ बाधक नहीं है। संसार में बाधा डालने जैसा है ही क्या? जहाँ खुद का है ही नहीं! और यह तो खुद का माना हुआ था। खुद का है ही नहीं, ऐसा हमने डिसीज़न ले लिया है न! और
खुद का है वह माना हुआ है। वह माना हुआ यानी कैसा कि हमने मान लिया होता है कि यह बैंक अपना है। उसके बाद एक दिन हम वहाँ पर जाएँ और मैनेजर से कहे कि, 'भाई, यह बैंक हमारा है। आप अब खाली कर दो।' तब वह क्या कहेगा? यानी कि माना हुआ सभी कुछ जेल में डलवाएगा। ऐसा मानें ही क्यों फिर? और माना हुआ किस काम का? डिसिज़न वाला होना चाहिए, एक्ज़ेक्ट होना चाहिए। माने हुए से तो फिर फजीहत होगी, बल्कि जेल में डलवा देंगे।
यह तो हम सबने ममता की इसलिए बंध गए हैं। वर्ना, कोई चीज़ अपनी है ही नहीं। शरीर भी अपना नहीं है। यदि अपना होता तो अपना साथ देता लेकिन यह तो जाते समय देखो न, कितने दुःख देकर जाता है शरीर और हमें घर खाली कर देना पड़ता है। और फिर क्या किसी जन्म में बगैर ममता के मरे है? चाचा बन के मर गए, मामा बन के मर गए, यही किया है न! यदि ममता रहित मरो तभी वहाँ पर प्रवेश है और ममता सहित मरोगे तो यहाँ पर है ही आपका। अनंत जन्मों से मरते आए हैं, लेकिन वह ममता तो गई नहीं न! वह तो रही हुई है। अभी तक तो ममता गई ही नहीं न! यह ममता सचमुच की नहीं है, ऐसा ज्ञान हुआ लेकिन ममता अभी तक गई नहीं है। 'यह ममता सचमुच की नहीं है' ऐसा ज्ञान होना, वह भी बहुत कठिन हैं, अत्यधिक कठिन है।
जो ममता वाला है, वह 'खुद' नहीं है मैंने आपको ममता रहित बना दिया, फिर भी कहते नहीं हो आप! आपको ममता रहित बना दिया, फिर भी आप ऐसा नहीं कहते कि 'मैं भी ममता रहित हूँ।'
प्रश्नकर्ता : लेकिन ममता ऐसे कैसे निकल सकती है?