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[४] ममता : लालच
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नाक को खुश्बू अच्छी लगती है। जीभ को भी उसका स्वाद अच्छा लगता है। हाथ से छूएँ तो वह भी अच्छा लगता है, पसंद आता है। इसलिए हम क्या कहते हैं कि जलेबी खाओ। यदि ये इन्द्रियाँ कबूल करें तो खाओ लेकिन इस विषय में तो अगर इन्द्रियों को सूंघ लें न, तो तीन दिन तक भोजन नहीं भाए। ____ लालची को तो अगर कोई स्त्री विषय नहीं दे न, तो उसे 'माँ' कहता है, ऐसे मूर्च्छित लोग हैं ! मेरा क्या कहना है कि आत्मसुख चखने के बाद विषय सुख की ज़रूरत ही कहाँ रही?
वर्ना. विषय यानी निरी गंदगी, गंदगी और गंदगी! यह तो ढकी हुई गंदगी है! यह चादर हटा दी जाए न, यह पोटली खोल दी जाए न, चादर खोल दी जाए न, तो पता चलेगा। सब घोटाला! यह बात याद नहीं रहने से, उसका भान नहीं रहने से ही यह हाल है न! और लालची तो क्या करता है? अगर स्त्री के हाथ से पीप निकल रहा हो न, और यह बहुत लालच में आ जाए न और अगर वह स्त्री कहे कि 'चाट ले।' तो वह चाट लेता है। कुत्ते भी जिसे नहीं चाटते, उसे यह चाट जाता है। उसे लालच कहते हैं। तब भी उसका अहम् नहीं जागता। अहम् नहीं जागता कि, 'ऐसा कैसे कर सकते हैं? जाने दे, मुझे नहीं चाहिए।' यह लालच तो मार डालता है इंसान को। नियम है कि बहुत प्याज़ खाता है न, उसे कहीं पर प्याज़ का ढेर पड़ा हो तब भी गंध नहीं आती लेकिन जो प्याज़ नहीं खाता है न, और अगर तीन कमरे छोड़कर दो प्याज़ रखे हुए हों न, तो यहीं से उसे गंध आ जाती है। इस प्रकार से लालची को मूर्छा हो जाती है।
विषय अर्थात् पाशवता! विषय तो पाशवता की निशानी कहलाती है! वह क्या मनुष्यपन की निशानी है ? विषय तो, एक-दो बच्चे हो जाएँ वहीं तक होता है। उसके बाद विषय रहना चाहिए क्या इंसान में?
उसी से टकराव प्रश्नकर्ता : विषय के लालच में जब खुद सफल नहीं हो पाता तब शंका वगैरह करता है न?