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आप्तवाणी-९
दादाश्री : जब से जन्मा, तब से यह ग्रंथि साथ में आई है। प्रश्नकर्ता : तो यह लालच इस जन्म का है या पिछले जन्म का
है?
दादाश्री : वह तो पिछले जन्म का ही है न! लेकिन अभी तक तो इस जन्म में भी भ्रमित हो जाता है। यानी जब उस घड़ी भ्रमित नहीं होगा तब जाकर लालच छूटेगा लेकिन ऐसा होता नहीं है न कि वह भ्रमित नहीं हो!
लालच तो सब से ज्यादा खराब चीज़ है। अब यह लालच मरने पर ही जाता है। फिर भी उस लालच का बीज रह जाए, तभी वापस दूसरे जन्म में फिर से लालच उत्पन्न होता है। लालच नहीं जाता। लालच तो इंसान को मार डालता है, लेकिन जाता नहीं है। लालच तो अज्ञानता की निशानी है।
ऐसा निश्चय छुड़वाए लालच यानी 'कोई चीज़ नहीं चाहिए' ऐसा नक्की किया, तब से लालच शब्द ही खत्म हो जाता है। वर्ना लालच ही जोखिम है न! क्रिया जोखिम नहीं है, लालच जोखिम है। कोई भी चीज़ नहीं चाहिए,' फिर हम ले लें, वह बात अलग है। बाकी, अपने को लालच होता नहीं है। लालच तो नर्क में ले जाता है और ज्ञान को पचने नहीं देता।
प्रश्नकर्ता : यह 'ज्ञान' लेने के बाद भी ये सारे लालच रहेंगे क्या?
दादाश्री : किसी किसी को रहते हैं। प्रश्नकर्ता : उसे इस लालच में से छूटना हो तो किस तरह से
छूटे?
दादाश्री : वह यदि निश्चय करे तो सबकुछ छूट सकेगा। लालच से छूटना तो चाहिए ही न। खुद के हित के लिए है न! निश्चय करने के