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आप्तवाणी - ९
वह तो निकाली मोह है । आया और गया, कुछ लेना नहीं और देना
नहीं ।
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आत्मा के लिए, मान-अपमान ?
यानी यह सब पुद्गल की भीख है । मान और अपमान, ये सब पुद्गल की भीख हैं । हमें तो कोई थप्पड़ मारे तो भी आपत्ति नहीं है ।
प्रश्नकर्ता : यह मान-अपमान की जो बात हुई, यह मान-अपमान का पता किसे चलता है ? वह देह को नहीं चलता, वह तो आत्मा को ही चलता है न?
दादाश्री : आत्मा के लिए मान-अपमान है ही नहीं। वह भिखारी नहीं है कि उसे मान-अपमान की पड़ी हो। वह तो पूरे ब्रह्मांड का राजा कहलाता है, ब्रह्मांड का भगवान कहलाता है
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प्रश्नकर्ता : लेकिन अंदर जो पहुँचता है, उससे तो आत्मा को चोट लगती है न ?
दादाश्री : नहीं । आत्मा को नहीं लगता । आत्मा को छूता भी नहीं
है।
प्रश्नकर्ता: देह तो अनात्मा है । देह पर क्या असर होगा मानअपमान का ?
दादाश्री : इस बर्फ पर धधकती अग्नि (अंगारा) रख दें तो क्या होगा ? अग्नि रख देंगे तो बर्फ जलेगा या नहीं ?
प्रश्नकर्ता : जलेगा नहीं, लेकिन बर्फ पिघल जाएगा ।
दादाश्री : वह तो उसका खुद का स्वभाव ठंडा है, इसलिए बल्कि अंगारे को ठंडा कर देता है । इसी प्रकार आत्मा को दुःख स्पर्श नहीं करता। इस देह को भी दुःख महसूस नहीं होता और आत्मा को भी महसूस नहीं होता।
प्रश्नकर्ता : तो किसे होता है ?