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आप्तवाणी-९
अगर हम अपने मुँह से दवा पीएँगे तो कहाँ जाएगी? जहाँ पर दर्द होता है, वहीं पर जाती है। यह मुँह से, जहाँ दर्द होता है, वहाँ दवा किस तरह से गई? वह नियम है, आकर्षण है वहाँ पर। अतः हम क्या कहते हैं ? दर्द दवाई को आकर्षित करता है, न कि दवाई दर्द को पकड़ती है।
यानी दर्द ही दवाई को आकर्षित करता है। बाजार में किसी जगह पर जो बोतल नहीं मिलती, वही बोतल यहाँ पर हाज़िर हो जाती है। फिर कहता है, 'यह दवाई किसी भी जगह पर नहीं मिल रही थी। यह एक ही मिली है। सिर्फ एक ही थी उसके पास।' मैंने कहा, 'हाँ, मैं समझ गया। तेरे कहे बिना भी मैं समझ गया!'
इसका क्या लालच? प्रश्नकर्ता : क्या ऐसा होता है कि लालची को नौकरी-धंधा करने का मन ही नहीं होता, लालच के कारण?
दादाश्री : उसे मिलता भी नहीं है और उसका मन भी नहीं होता।
अब लोग तो नए-नए लालच दिखाते हैं, तब मन में लगता है कि केला लूँ या केले का गुच्छा ले जाऊँ? कोई बहुत मेहनत करके कुछ कमाकर लाता है, लेकिन जब वह कमाई जाने को हो, तब उसे ऐसा लालची मिल आता है। लोग तो लालच दिखाएँगे, लेकिन खुद में लालच खड़ा हुआ कि मुश्किल में आ जाओगे। अपने को तो ऐसा धंधा करना चाहिए कि जो हमें 'हेल्प' करे। अपनी प्रकृति में जो काम हैं, उतने ही काम करें, तभी कर पाएँगे लेकिन अगर ऐसा कुछ करने जाएँगे जिसका प्रकृति में सिर्फ आभास मात्र दिख रहा हो तो उसी में मारे जाएँगे! प्रकृति में भी आभास जैसे व्यापार होते हैं। किसी ने कहा कि तुरंत ही अंदर लालच के मारे उसमें पड़ने का मन हो जाता है। वह सब आभास जैसा कहलाता है। हमारे साथ ऐसा हुआ था। हमने ये सभी आभासी व्यापार देखे हैं।
इस संसार की आशा रखें, लालच रखें या नहीं रखें, तब भी फल वही का वही आएगा। फिर इसका लालच क्या? नाशंवत चीजें हैं। आप