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आप्तवाणी-९
अधिक घुस जाएगा। वह तो, यहाँ सत्संग में बैठे-बैठे किसी दिन निकल जाएगा लेकिन वह भी एकदम नहीं निकल सकता। यह आसान बात नहीं है।
लालच किस तरह से जाए, उसका कोई रास्ता नहीं है लेकिन अहंकार करके लालच को निकाल दिया जाए, तो लालच चला जाएगा। अतः लालच को अहंकार करके निकाल देना है। उसके लिए तो ज़बरदस्त अहंकार किया जाए तो भी हर्ज नहीं है। 'दादा' के पास शक्तियाँ माँगकर अहंकार उत्पन्न करे और अहंकार से उसे निकाल दे, तब! वह भी यों ही तो नहीं निकल जाएगा न! जो सहज हो चुका है, वह निकलेगा कैसे? इसलिए अहंकार से निकाल देंगे, तब जाएगा लेकिन फिर वापस उस अहंकार को धोना पड़ेगा। पहले लालच निकाल देना है, और फिर अहंकार को धोना है!
यानी अहंकार करके भी निकाल देना है। फिर उस अहंकार को हम निकाल देंगे, वर्ना अनंत जन्मों का यह रोग कब निकलेगा? वह तो मेरे जैसे की हाज़िरी में निकला तो निकला, नहीं तो राम तेरी माया!
तब लालच जाएगा
प्रश्नकर्ता : इस लालची के लिए छूटने का दूसरा कोई उपाय तो होगा न?
दादाश्री : इसमें तो, जब वह खुद छोड़ देगा, तभी लालच जाएगा। सभी बातों में ऊपर से खत्म कर दे तभी हो सकेगा, वर्ना इसका स्वभाव तो आत्मघाती है ! लालच अर्थात् खुद, खुद का आत्मघात करना। उसका कोई उपाय नहीं लिखा गया है।
प्रश्नकर्ता : उसे हर तरफ से खत्म करना हो तो वह किस तरह से हो पाएगा?
दादाश्री : नहीं, ऐसा होगा ही नहीं। वह तो खुद अपना सबकुछ ही बंद कर दे, ललचाने वाली सभी चीजें बंद कर दे, बारह महीनों तक