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[५] मान : गर्व : गारवता
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सामने वाले व्यक्ति ने कहा हो कि, 'वहाँ से मेरा ज़रा इतना काम कर दो न!' तो क्या है कि अगर पच्चीस हज़ार का माल दिलवाना हो तो उसमें हम तीन सौ-चार सौ कमिशन खा जाएँ तो? क्या सामनेवाला व्यक्ति ऐसा जानता था कि यह 'कमिशन' खाएगा? क्या इसलिए उसने आपको दिया है ? नहीं। यानी उसने हमें सौंपा और उसमें यह विश्वासघात?! ऐसा शोभा नहीं देता अपने को!
प्रश्नकर्ता : लेकिन यह सब तो नैचुरल है न?
दादाश्री : क्या नैचुरल? पैसे खाने चाहिए ? पैसे नहीं खाने चाहिए। यह तो खानदानियत है। अब अज्ञान दशा में भी यदि खानदानियत का अहंकार नहीं हो तो खानदानियत का दिवालिया निकल जाएगा। हम तो खानदानी! खानदानी इंसान से कुछ गलत हो ही नहीं सकता। कुछ भी गलत नहीं करे, उसी को कहते हैं खानदानी। जो कोई भी लोकनिंद्य कार्य नहीं करे, उसे कहते हैं खानदानी। जो खानदानी होता है, उससे कोई लोकनिंद्य कार्य हो ही नहीं पाता। खानदानी से ऐसा कार्य नहीं होता कि लोग निंदा करें। यदि लोग निंदा करें, तब भी यदि वह कहे कि 'हम खानदानी हैं,' तो वह झूठा खानदानी कहलाएगा। कोई एक्सेप्ट करेगा ही नहीं न! लोग निंदा करें और खानदानी कहलाए, ये दोनों एक साथ हो ही नहीं सकते न!
अब, कोई काम करे और कह दे कि 'मैंने किया,' तो उसकी खानदानियत चली जाएगी। खानदानी तो दोनों तरफ नुकसान उठाता है, आते हुए भी नुकसान उठाता है और जाते हुए भी नुकसान उठाता है। जबकि आरी जैसा इंसान तो दोनों तरफ से काटता है, देते हुए भी काटता है और लेते हुए भी काटता है!
मान की भूख अब बचपन में हर एक बात में जिसे मान मिला हो, उसे बड़ी उम्र में मान की भूख नहीं रहती। बचपन में मान की भूख मिट गई हो तो उसे मान की नहीं पड़ी होती। अपमान की तरछोड़ (तिरस्कार सहित