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[५] मान : गर्व : गारवता
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नहीं छोड़ता। ऐसे लोभी तो इस काल में ढूँढने भी मुश्किल है। इस काल में ऐसे लोभी हैं ही नहीं। लोभी तो तीसरे या चौथे आरे (कालचक्र का एक हिस्सा) में थे। बहुत ज़बरदस्त लोभी। इस काल में न तो मान का ठिकाना है, न ही लोभ का ठिकाना।
__ मान व मान की भीख जिसे 'कुछ भी नहीं चाहिए,' उसका सारा काम हो जाता है। चीज़ सामने से आकर गिरे तब भी नहीं चाहिए। आपको तो चाहिए न? क्याक्या चाहिए?
प्रश्नकर्ता : ऐसा पता चलता है कि अभी तक मान चाहिए।
दादाश्री : मान चाहिए उसमें हर्ज नहीं है लेकिन मान के लिए उपयोग रहा करता है ? कि मान कैसे मिले, ऐसा?
प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसा उपयोग नहीं रहता। दादाश्री : फिर यदि मान नहीं मिले तो? प्रश्नकर्ता : तो कोई परेशानी नहीं।
दादाश्री : तब फिर कोई परेशानी नहीं है। वर्ना मान की कामना हो तो उसी को भीख कहते हैं। किसी भी चीज़ की कामना, वह भीख कहलाती है। कामना, भीख वगैरह निकाली नहीं माने जाते। कामना, भीख लगभग एक ही अर्थ वाले शब्द हैं। वर्ना, यदि उस तरफ उपयोग नहीं जाए तो कुछ स्पर्श ही नहीं करेगा। यानी इसमें मार्ग नहीं रुंधता, लेकिन भीखवाला तो 'दूसरे मार्ग पर चला गया।' ऐसा कहा जाएगा।
प्रश्नकर्ता : कोई मान दे और अच्छा लगे तो, उसे मान की भीख कहते हैं?
दादाश्री : नहीं। अच्छा लगता है, वह तो स्वाभाविक रूप से अच्छा लगता ही है। आपको चीनी वाली चाय पसंद है या बिना चीनी की? चीनी वाली चाय स्वाभाविक रूप से अच्छी ही लगती है, लेकिन