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आप्तवाणी-९
इसलिए वह समझता है कि 'सभी लोग यह करते हैं न!' यानी उसे बहाना मिल गया। अरे, सभी कुएँ में गिर रहे हों तो तुझे भी कुएँ में गिरना चाहिए?
लेकिन लालच छूटा कि उसकी सुगंधी आती है ! प्रश्नकर्ता : अध्यात्म में लालची शब्द कभी नहीं सुना।
दादाश्री : कोई पृथक्करण करता ही नहीं न! पृथक्करण कौन करेगा? यह तो हम विस्तारपूर्वक समझा देते हैं। जिन्होंने शास्त्र पढ़े होते हैं, वे चार प्रकार बताते हैं क्रोध-मान-माया-लोभ! तब कोई कहेगा, 'वह तो साहब, शास्त्रों में है। कुछ नया बताइए न!' यानी कि पहले से चली आई है। वह शास्त्र जब बना होगा न, तभी से उसमें लिखा है 'जली हुई डोरी से साँप की भ्रांति हुई, उसी प्रकार यह जगत् भ्रांतिवाला दिखाई देता है!' तो अभी तक भी इन शब्दों को बदलनेवाला कोई निकला नहीं है। उन्हीं शब्दों से चल रही है गाड़ी! 'सिमिली' ही है यह। और कोई 'सिमिली' नहीं आती है। महान पुरुषों ने भी यही 'सिमिली' दी है। और दूसरी, 'सीप में चांदी की भ्रांति हुई।' ये दो शब्द तो पहले से चले आए हैं। तू दो नए शब्द बोल। शब्द नए होने चाहिए या 'डिज़ाइन' वाले होने चाहिए या 'प्रैक्टिकल' होने चाहिए, ऐसा होना चाहिए। तभी किसी व्यक्ति में परिवर्तन होगा, नहीं तो, 'पहले से चली आई,' उसे क्या करना है? वह 'सिमिली' तो अगर मैं पढ़ता तो मुझे भी मिल जाती!
इसलिए कृपालुदेव ने कहा है न, कि जो शास्त्रों में नहीं है, सुनने में नहीं आया, फिर भी अनुभव में आए, ऐसी जिनकी वाणी है, वे ही 'ज्ञानी' कहलाते हैं ! वर्ना फिर उसे 'ज्ञानी' कहेंगे ही नहीं न!