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[४] ममता : लालच
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बार छूने देती थी! इसके बजाय समुद्र में समाधि ले लेता तो क्या बुरा था? किसलिए ऐसे चार बार साष्टांग?
प्रश्नकर्ता : इसमें स्त्री ऐसा क्यों करती है ? दादाश्री : वह एक प्रकार का अहंकार है? प्रश्नकर्ता : लेकिन उसे फिर क्या फल मिलता है ?
दादाश्री : कोई फायदा नहीं, लेकिन अहंकार है कि 'देखा न, इसे कैसा सीधा कर दिया!' और पति बेचारा लालच से ऐसा करता भी है! लेकिन स्त्री को फिर फल तो भुगतना पड़ेगा न?
प्रश्नकर्ता : उसमें खुद स्त्रीपने का बचाव करती है?
दादाश्री : नहीं। स्त्रीपन का बचाव नहीं, वह अहंकार ही रौब मारता है और पति को बंदर की तरह नचाती है, बाद में उसका रिएक्शन तो आएगा न? पति भी फिर बैर रखता है कि 'मैं तेरे कब्जे में आया, तो तूने मेरा ऐसा हाल किया और मेरी इज़्ज़त ली। तू मेरे कब्जे में आए उतनी ही देर है !' फिर वह ले लेता है आबरू! घड़ीभर में तहस-नहस कर देता है फिर।
लालची का स्पर्श बिगाड़े संस्कार छोटे लड़के-लड़कियाँ होते हैं न, उन्हें लालची व्यक्ति को छूने तक नहीं देना चाहिए। वर्ना उस लालची व्यक्ति का हाथ छू जाए न तो उस छोटी बच्ची में खराब संस्कार पड़ जाते हैं। छोटा बच्चा हो, फिर भी उसमें खराब संस्कार पड़ जाते हैं इसलिए उसका हाथ नहीं लगे तो अच्छा, क्योंकि वह लालची छेड़खानी करने के लिए बुलाता है उसे। अभी यदि बच्चे दिखने में काले हों, अच्छे नहीं दिखते तो नहीं बुलाता जबकि यह तो गुलाब के फूल जैसी होती है इसलिए बुलाता है। वह भी छेड़खानी करने के लिए। ऐसी छेड़खानी, उसमें क्या कुछ विषय है? लेकिन जब तक नहीं छूए तब तक उत्तम! क्योंकि लालची का मन तो वहीं पर जाता है फिर। आकर्षण क्या सिर्फ विषय का ही होता है?