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[४] ममता : लालच
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निभा सकते हैं लेकिन जिसे लालची ही कहा जाता है, उसे तो जैसे जानवर ही देख लो न, मनुष्य के रूप में!
किसी व्यक्ति को, कोई खाने की अच्छी चीज़ ला दें. और उसे वह बहुत भाती हो तो वह लालच के मारे वहीं बैठा रहता है। दो-तीनचार घंटों तक बैठा रहता है। उसे थोड़ा बहुत दे दें, उसके बाद ही वह जाता है लेकिन वह लालच के मारे बैठा रहता है लेकिन जो अहंकारी है वह तो कहेगा, 'रख तेरे पास, इसके बजाय मेरे घर जाने दे न!' वह लालची नहीं होता।
अतः यह जगत् लालच से बंधा हुआ है। अरे! लालच तो कत्ते व गधे में होता है लेकिन अपने में लालच क्यों होना चाहिए? कहीं लालच तो होता होगा?
चूहा पिंजरे में कब आता है ? पिंजरे में कब पकड़ा जाता है? प्रश्नकर्ता : लालच हो तब।
दादाश्री : हाँ, रोटी की सुगंध आई और रोटी खाने गया कि तुरंत अंदर फँस जाता है। पिंजरे के अंदर रोटी देखी तो बाहर रहकर वह विकल होता रहता है कि 'कब घुस जाऊँ? कब घुस जाऊँ ?' फिर अंदर घुस जाता है, तब ऑटोमैटिक पिंजरा बंद हो जाता है। मनुष्यों को ऐसा सब 'ऑटोमैटिक' आता है। अतः अपने आप ही फँस जाता है। यानी सर्व दुःखों की जड़ लालच है।
जोखिम, लोभ या लालच? प्रश्नकर्ता : लालच कौन करवाता है ? मन करवाता है?
दादाश्री : मन करवाता है, लेकिन मूलतः तो यह अहंकार का ही गुण है न! पिछले जन्म का लालच मन के माध्यम से निकलता है, और फिर इस अहंकार से वापस लालच खड़ा होता रहता है।
प्रश्नकर्ता : यह लालच कौन से कषाय में जाता है?